निष्ठुर हाथों ने बचपन छुड़ाया
जमाने की ठोकर ने चलना सिखाया !
अभी खिसकना सीखा था
वक़्त ने कैसे बड़ा किया
कुछ कठोर सच्चाई ने
कुछ प्राकर्तिक गहराई ने
कुछ पिघलते भावों ने
कुछ सिसकते घावों ने
कुछ टूटती कसमों ने
कुछ खोखली रस्मों ने
कुछ बेमानी बातों ने
कुछ अपनों की घातों ने
कुछ संमाज की दोहरी चालों ने
कुछ दोगली फितरत वालों ने
समय से पहले बड़ा किया
अभी खिसकना सीखा था
वक़्त ने कैसे खड़ा किया!!
इन्हीं कठिन हालातों से गुज़रते हुए हम कब बड़े हो जाते हैं और बचपन पीछे छूट जाता है , पता ही नहीं चलता। शायद ज़िन्दगी इसी तरह हमें बड़े-बड़े पाठ भी सिखा देती है।
जवाब देंहटाएंsach.....kamal kar di.
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी आज के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
बचपन-बुढ़ापा और जवानी जीवन के अंग हैं!
जवाब देंहटाएंमगर सबसे ज्याद बचपन ही याद आता है!
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बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति दी है आपने!