आज मैं अपनी एक हकीकत को या कहिये एक बेवकूफी को पहली बार हास्य रस का पुट देते हुए कविता के माध्यम से आप लोगो से शेयर कर रही हूँ !प्रतिक्रिया जरूर दीजियेगा !
वाटर का ऐसा फोबिया क़ि समुद्र के शांत किनारे
चुल्लू भर पानी में बैठ कर तन मन इस तरह घबराते
क़ि दूसरे मजे लूटने वालों के बच्चे लेकर
बैठने के आफ़र आते!
फिर जब उम्र हुई पचास और बन गई नानी
तैराकी विद्या सीखने क़ी मन में ठानी
पति ने भी उत्साही किया ,सोचा अगर सीख जायेगी
कभी डूबने लगी तो खुद ही बच तो जायेगी !
कुछ जल्दी ही फ्री स्टाइल सीख लिया
सोचा चलो किला फतह किया
सीखते हुए जुम्मा जुम्मा हुए थे चार दिन
अपने को समझने लगी स्विम्मिंग कुवीन!
छोड़ चार जा पहुंची आठ फीट क़ी गहराई में
सोचा अब तो सब आता है
कुछ फर्क नहीं गहराई में !
फिर अचानक मन में आया ,ओवर कांफिडेंस ने सिर उठाया
फ्री स्टाइल छोड़ बैकफ्लोट करने लगी
खुश इतनी जैसे ऊँचे गगन में उड़ने लगी !
वापस आते हुए जब सात फीट तक पंहुच गई
लगा जैसे नाव भंवर में अटक गई
बालेंस बाडी का ऐसे बिगड़ गया
मानो अचानक कोई कारगो शिप उलट गया !
आकार धीरे धीरे वर्टिकल हुआ
और फाईनली एंगल नाइंटी डिग्री हुआ
जैसे ही पाँव ने पूल के धरातल को छुआ
सारा कांफिडेंस पल में उड़नछू हुआ !
मोत को रूबरू देख हिम्मत दम तोड़ने लगी
धड़कने बेलगाम घोड़े क़ी तरह दोड़ने लगी
अपनों क़ी पिक्चर मन के थियेटर में दोड़ने लगी!
दो तीन बार बाडी सतह पर आई
चारो तरफ नजर दोड़ाई
लाइफ गार्ड भी मस्त था
मेरी तरफ से आश्वस्त था !
फिर एक बात जहन में आई
सिखाने वालों क़ी क्यूँ नाक कटाई
मैं क्यूँ डूब रही हूँ
थोडा बहुत तो मुझे आता है
ये क्यूँ भूल रही हूँ !
वाटर फोबिया को जीतना है ध्यान में आया
खोया कांफिडेंस वापस आया !
फिर हुई जोश में पानी से हाथापाई
फ्री स्टाइल में ही वापस आई
जान बची और लाखो पाई
चलो किसी ने नहीं देखा
बाहर निकल कर खैर मनाई !
फिर भी मैंने हार न मानी
पानी को पूर्णतः फतह करने क़ी ठानी
अब मैं खुद गोते लगाती हूँ
धरातल को पैर से नहीं
हाथो से छू कर आती हूँ !!
अब कांफिडेंस तो है पर ओवर कांफिडेंस तौबा तौबा !!!