संवेदनाओं का संकुचन देख रहे हैं
आदान-प्रदान सब गौण हुए
अब ऐसा चलन देख रहे हैं |
स्वार्थ के बढ़ते दाएरे,
जन- जन को छलते देख रहे हैं
हिंद का वैभव स्विस बेंकों में
हक को जलते देख रहे हैं |
भ्रष्टाचारी को जीवंत,
संत ज्ञानी को मरते देख रहे हैं
अगन उगलते सूरज में,
नम धरा झुलसते देख रहे हैं |
दूध की नदियाँ उनके प्रांगण,
ये सूखी प्याली देख रहे हैं
कनक की रोटी उनके घर में
ये खाली थाली देख रहे हैं |
देख के विघटित स्वर्ण चिरैया,
शत्रु जाल फेंकते देख रहे हैं
भावी देश की सूरत को हम
नभ दर्पण में देख रहे हैं |
*****
वाह!
जवाब देंहटाएंआपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 24-09-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1012 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ
कितना कुछ देखना भाग्य में थोप दिया है ईश्वर ने।
जवाब देंहटाएंआज के यथार्थ का सटीक चित्रण...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया दीदी |
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ||
भावनाओं मैं पिरोया देश के प्रति प्यार और वर्तमान पर प्रहार करती तीखी पोस्ट ,बधाई |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा है ...!!
जवाब देंहटाएंबिलकुल ऐसा ही जीवन हो गया है ...!!
काश ऋतु बदले ...!!
वाह राजेश जी...
जवाब देंहटाएंकनक की रोटी उनके घर में
ये खाली थाली देख रहे हैं |
बेहतरीन अभिव्यक्ति...
सादर
अनु
चारों तरफ़ फैली हताशा निराशा को आपने इस रचना में स्वर देकर गंभीर चिंतन का आयाम पाठकों को सौंपा है।
जवाब देंहटाएंवाह: राजेश जी .. यथार्थ का सटीक और सही चित्रण किया है...
जवाब देंहटाएंसंवेदनाओं का संकुचन देख रहे हैं
जवाब देंहटाएंआदान-प्रदान सब गौण हुए
अब ऐसा चलन देख रहे हैं |
स्वार्थ के बढ़ते दाएरे, (दायरे )........दायरे
जन- जन को छलते देख रहे हैं
हिंद का वैभव स्विस बेंकों में
हक को जलते देख रहे हैं |
आम आदमी को पल पल मरते देख रहें हैं ....बढ़िया प्रस्तुति संवेदनाओं से भीगी हुई .
bahut sundar likha hai..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंउल्लू भी नहीं बैठते
अब तो शाखों पर यहाँ
बन्दर को अदरख खाते
हम भी देख रहे हैं !
बहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंवाह ...बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंvakayee me aap ne jo likha hai use dushyant ke shabdo me"sach kalpna se aage nikalne lg gye hai" aur meri nazar me"aadmi ab aadmi ko bhun khane lag gye hai......"
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी और बेहतरीन प्रस्तुति। मेरी नई पोस्ट पर आप का इंतजार है..
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जवाब देंहटाएंकनक की रोटी उनके घर में
ये खाली थाली देख रहे हैं |
बहुत बढ़िया........
दूध की नदियाँ उनके प्रांगण,
जवाब देंहटाएंये सूखी प्याली देख रहे हैं |
Very Nice Said..! Thanks 4 sharing.
very touching creation.
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति दीदी |
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें ||
एक शसक्त रचना
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