पलकों पे टिकी शबनम को सुखा ले साथिया
धूप के जलते टुकड़े को बुला ले साथिया
जुल्म ढा रही हैं मुझ पर सेहरे की लडियां
इस चाँद पर से बादल को हटा ले साथिया
बिछ गए फूल खुद टूट कर राहों में तेरी
अब कैसे कोई दिल को संभाले साथिया
बिजली न गिर जाए तेरे दामन पे कोई
कर दे मेरी तकदीर के हवाले साथिया
देख के सुर्ख आँचल में लहराती शम्मा
दे देंगे जान इश्क में मतवाले साथिया
यहाँ जल रहे हैं यार सब किस्मत पे मेरी
मेंहदी वाले हाथों में छुपा ले साथिया
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अच्छी प्रस्तुति दीदी ||
जवाब देंहटाएंवाह बेहतरीन खुबसूरत ग़ज़ल क्या बात है.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएं:-)
बेहतरीन और स्वयं ही बोलती हुयी रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना....राजेश जी..
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जवाब देंहटाएंsaarthak srijan, badhai.
भाव मय सुन्दर रचना ... मेहँदी के सुर्ख हाथ ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना ...
हिन्दीदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंwaah kya baat hai surkh mehandi ka chada rang laal hai ,
जवाब देंहटाएंhamko to aapke shabdo se pyar hai
बिछ गए फूल खुद टूट कर राहों में तेरी
जवाब देंहटाएंअब कैसे कोई दिल को संभाले साथिया
बिजली न गिर जाए तेरे दामन पे कोई
कर दे मेरी तकदीर के हवाले साथिया
wah lajbab rachana likhi hai apne ....hr sher umda lga ...badhai ke sath abhar bhi.