१) जिह्वा उगल रही जहर ,मुट्ठी में अंगार|
कोप धुंआ ढाता कहर ,झुलस रहा संसार||
(२) नफरत की इस आग से ,कोई ना बच पाय |
धीमे -धीमे फैलती ,सभी भसम कर जाय ||
(३) क्रोध,द्वेष ,ईर्ष्या ,जलन ,मति के चार विकार |
विनम्रता सु ज्ञान ,विनय ,ये तीनों उपचार ||
(४) प्रेम भाव से जो रहे ,प्रभु में ध्यान लगाय |
मुट्ठी में अंगार की, लौ शीतल हो जाय ||
(५) क्रोध अगन अंगार है ,संयम शीतल धार |
जो इतना समझा यहाँ ,उसका बेडा पार ||
(६) ज्ञान हरे अज्ञानता ,शान्ति हरता क्रोध |
उर में जिसके आग है,उसे नहीं कछु बोध ||
(७) त्याग करे जो बैर का, प्यार चित्त में लाय|
प्रभु उसका कल्याण कर , मोक्ष पंथ दिखलाय ||
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कुंडली
काला धन वापस मिले ,भागे भ्रष्टाचार
भड़क गया जो ये कहीं ,मुट्ठी का अंगार
मुट्ठी का अंगार , धुंआ बेहद जहरीला
कर देगा ये क्रोध ,चेहरा काला पीला
बंद करो ये बाँट ,विषमय मौत की हाला
अच्छा ना ये भ्रात ,कोयले सा मुख काला
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प्रेम भाव से जो रहे ,प्रभु में ध्यान लगाय |
जवाब देंहटाएंमुट्ठी में अंगार की, लौ शीतल हो जाय ||
bahut hi sundar ...gyanvardhak ...utkrisht lekhan ke liye hriday se badhaii aapko ...
subah subah man shaant ho gaya ...
bahut sundar rachna ...!!
abhar...
हार्दिक आभार अनुपमा जी
हटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर राजेश जी....
प्रेम भाव से जो रहे ,प्रभु में ध्यान लगाय |
मुट्ठी में अंगार की, लौ शीतल हो जाय ||
बहुत बढ़िया रचनाएँ....
सादर
अनु
आभार अनु जी
हटाएंदेश सुखद भविष्य की ओर अग्रसर हो।
जवाब देंहटाएंआमीन
हटाएंnice presentation
जवाब देंहटाएंthanks Shalini ji
हटाएंबहुत सुन्दर और प्रभावी प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआभार कैलाश जी
हटाएं्बहुत ही प्रभावशाली प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार वंदना जी
हटाएंwah bahut hi sargarbhit rachana ....badhai rajesh ji .
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार नवीन जी
हटाएंबहुत बढ़िया रचनाएँ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार महेश्वरी कनेरी जी
हटाएंक्रोध अगन अंगार है ,संयम शीतल धार |
जवाब देंहटाएंजो इतना समझा यहाँ ,उसका बेडा पार ||
सुंदर, अनुकरणीय पंक्तियाँ
हार्दिक आभार डा.मोनिका जी
हटाएं.
जवाब देंहटाएं`*•.¸¸.•*´¨`*•.¸¸.•*´
ॐ गं गं गं गणपतये नमः !
गणेश चतुर्थी मंगलमय हो !
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गणेश चतुर्थी की बधाई राजेंद्र जी
हटाएं
जवाब देंहटाएं(३) क्रोध,द्वेष ,इर्ष्या(ईर्ष्या ) ,जलन ,मति के चार विकार |
विनम्रता सु ज्ञान ,विनय ,ये तीनो (तीनों )उपचार ||
बंद करो ये बाँट ,विषमय मौत की हाला
अच्छा ना ये भ्रात ,कोयले सा मुख काला
बहुत सशक्त रचना है बधाई -कैग नहीं ये कागा है ,जिसके सिर पे बैठ गया ,वो अभागा है .
हार्दिक बधाई विरेन्द्र कुमार शर्मा जी रचना पसंद करने के लिए भी और टंकण त्रुटी पर ध्यान दिलाने के लिए भी
हटाएंहार्दिक आभार रविकर भाई
जवाब देंहटाएंवाह सुन्दर अति सुन्दर रचना, गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंअरुन = www.arunsblog.in
thanks Arun.
हटाएंकाला धन वापस मिले ,भागे भ्रष्टाचार
जवाब देंहटाएंभड़क गया जो ये कहीं ,मुट्ठी का अंगार
मुट्ठी का अंगार , धुंआ बेहद जहरीला
कर देगा ये क्रोध ,चेहरा काला पीला
बंद करो ये बाँट ,विषमय मौत की हाला
अच्छा ना ये भ्रात ,कोयले सा मुख काला
बहुत सटीक वर्णन...सबको सदबुद्धि दे भगवान...
बहुत बहुत हार्दिक आभार अनीता जी
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया सार्थक एवं प्रभावशाली रचना॥
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार उदयवीर सिंह जी
हटाएंकाला धन वापस मिले ,भागे भ्रष्टाचार
जवाब देंहटाएंभड़क गया जो ये कहीं ,मुट्ठी का अंगार.
सही सलाह शायद बाद में सम्हलने का मौका ना मिले.
जी हाँ रचना जी वो वक़्त आने ही वाला है अगर नहीं संभले तो | आभार आपका रचना के मर्म को पकड़ने के लिए
हटाएंbahut achcha likhin .....
जवाब देंहटाएंआभार मृदुला जी
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