(1)
शब्दों के खंजर
कपड़ों के दाग होते
तो कब का धो देती दोस्त
शब्दों के दाग हैं दिल पर
जो मिटाए नहीं मिटते
जो एक खंजर की तरह
काटते हैं मेरे दिल के
हिस्से कतरा कतरा
कोई नेह की शबनम गिरे
दिल पर तो करार आ जाए
कोई तो छलनी मिले ऐसी
जिससे छान दूं
ये जहरीले शब्द
और शब्दों के साथ दिल के इस दाग
से भी मुक्ति मिल जाए |
(2)
शबनम की बूँद
कमल की कोमल पंखुड़ियों
पर एक रात का बसेरा
सबकी आँखों की शीतलता ,
रवि के आलोकिक
रूप पे फिसली
उसकी अगन से संतप्त
मैं शबनम की एक बूँद
भोर होते ही
देखते ही देखते
पल में उड़न छू हो गई
चली गई फिर बादलों
की गोद में
क्यूंकि यही तो बदा है
मेरी नियति में
(3)
हस्तरेखाएँ
तुम्हारा आश्वासन भरा शब्द
जो मेरी हाथों की लकीरों को
को देखकर लिख दिया
था मेरे दिल पर
जिसकी इन्तजार में
बीत गई सदियाँ
खो दिया अपना अस्तित्व
प्रति दिन सूरज के उदय के
साथ बंधती रही उम्मीदें
और अस्त के साथ टूटती रही
कभी मेरी अंजुरी में
वो आश्वासन भरा शब्द नहीं
आया मरुस्थल में
वो नीर का झरना
कभी नहीं मिला
लगता है
गरीब की हस्तरेखाएँ
भी एक छलावा है
एक मिथ्याभ्रम है
या तुम झूठे थे !!
************
बेहतरीन कवितायेँ
जवाब देंहटाएंतीनों की तीनों बेहतरीन कवितायें...
जवाब देंहटाएंanubhutio ki parakastha ki abhvyakti kari tinikshnikaye,badhayee
जवाब देंहटाएंवाह आदरेया एक से बढ़कर एक क्षणिकाएं, बेहद सुन्दर बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंकपड़ों के दाग होते
जवाब देंहटाएंतो कब का धो देती दोस्त
शब्दों के दाग हैं दिल पर
जो मिटाए नहीं मिटते
सुन्दर अभिव्यक्ति ..बेहद सुन्दर रचना है
तीनों क्षणिकाए पसंद आई,,,,बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,बधाई
जवाब देंहटाएंRECENT POST,परिकल्पना सम्मान समारोह की झलकियाँ,
समारोह में आपसे न मिल पाया,,,मुझे बेहद अफ़सोस है,,,
तीनों बेहतरीन क्षणिकाए.
जवाब देंहटाएंवाह|||
जवाब देंहटाएंबहुत -बहुत बेहतरीन क्षणिकाए..
शानदार ....
:-)
बहुत सुन्दर क्षणिकाएं ..उम्दा
जवाब देंहटाएंवाह तीनों ही रचनाएं अच्छी हैं
जवाब देंहटाएंवाह....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..
तीनों एक से बढ़ कर एक..
सादर
अनु
सुन्दर क्षणिकाएं .
जवाब देंहटाएंआज अलग सा लिखा है आपने .
बहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएंआपकी यह सुन्दर प्रविष्टि आज दिनांक 03-09-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-991 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
शबनम की बूँद
जवाब देंहटाएंकमल की कोमल पंखुड़ियों
पर एक रात का बसेरा
सबकी आँखों की शीतलता ,
रवि के आलोकिक (अलौकिक )
रूप पे फिसली
उसकी अगन से संतप्त
मैं शबनम की एक बूँद
भोर होते ही
देखते ही देखते
पल में उड़न छू हो गई
चली गई फिर बादलों
की गोद में
क्यूंकि यही तो बदा है
मेरी नियति में.....एक विचार तारतम्य लिए हैं तमाम विचार भाव कणिकाएं ....सुन्दर मनोहर ...
बेहतरीन एक से बढ़कर एक !
जवाब देंहटाएंदेखते ही देखते
जवाब देंहटाएंपल में उड़न छू हो गई
चली गई फिर बादलों
की गोद में
क्यूंकि यही तो बदा है
मेरी नियति में
जीवन की सच्चाई..तीनों ही क्षणिकाएँ भावपूर्ण हैं..आभार!
शायद इसलिए ही कहते हैं की बोलने से पहले सौ बार सोच लेना चाहिए ... बोले हुवे शब्द वापस नहीं आते ... गहरे निशान बना देते हैं ...
जवाब देंहटाएंब्लोगर सम्मलेन में आपसे मिलने का अवसर नहीं मिला जिसका मुझे दुःख है ....उत्कृष्ट कवितायेँ ... साधुवाद जी
जवाब देंहटाएं1. लोड न लें।
जवाब देंहटाएं2. फिर भी,कविताओं में कमल से कहीं ज़्यादा शबनम की मौजूदगी है।
3. ऊर्जा को नई दिशा की दरकार थी शायद। इतना इंतज़ार,इतनी बेक़रारी प्रभु के लिए होती,तो कब के मिल गए होते।
बहुत ही सुंदर क्षणिकाएं |आभार
जवाब देंहटाएं'कोई तो छलनी मिले ऐसी
जवाब देंहटाएंजिससे छान दूं
ये जहरीले शब्द
और शब्दों के साथ दिल के इस दाग
से भी मुक्ति मिल जाए |'
- बहुत मार्मिक लेखन ,जीवन की विडंबनाओं को व्यक्त करता हुआ ,एक बार पढ़ कर मन नहीं भरता !
पुस्तक के प्रकाशन एवं शानदार लोकर्पण हेतु हार्दिक बधाई स्वाकारें !