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रविवार, 13 मई 2012

भक्षक (लघु कथा )



 साहब मेरी बेटी कहाँ है ?हरिया ने हाथ जोड़कर स्थानीय   थाने में बैठे दरोगा से गिड़ गिडाते हुए पूछा |अब होश आया तुझे दो दिन हो गये तेरी बेटी को नहर से निकाला था,हाँ आत्महत्या से पहले तेरे पास भी तो आई थी अपनी  ससुराल वालो के अत्याचार का दुखड़ा रोने करी थी क्या तूने उसकी  मदद ,अब आया बेटी वाला |आत्म हत्या भी जुर्म है केस चलेगा अभी लाकअप में बंद है कल आना वकील के साथ लिखत पढ़त करके छोड़ देंगे|पर साहब इन कोठरियों में तो दिखाई नहीं !!!उसकी बात पूरी होने से पहले ही दरोगा ने पास खड़े सिपाही से कहा इसे बाहर तो छोड़ के | फिर दूसरे सिपाही को बुलाकर धीरे से  बोला जा  पीछे के दरवाजे से लाकर उसे लाकअप  में डाल दे |येस सर कह कर फिर ठिठकते हुए धीरे से  सिपाही बोला सर अपने घर की चाबी तो दे दीजिये पहले !!!       



17 टिप्‍पणियां:

  1. ्जब रक्षक ही बन जाए तो कहाँ जाए...मार्मिक कथा..

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  2. मार्मिक ...
    कितनी कडुवी सच्चाई कों लिखा है ...

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  3. कड़वी सच्चाई है हमारे सिस्टम की..............

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  4. Thanx ,ki aapne meri rachna ko charcha manch men sthan diya.

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  5. कडुआ सच .प्रभावशाली रचना..

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  6. बिल्‍कुल सच कहा है आपने ...मन को छूती हुई प्रस्‍तुति।

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  7. यहाँ हर स्थान पर ऐसी कहानियां...रोज़ गढ़ी जा रहीं हैं...बहुत ही मार्मिक चित्रण...

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