कुछ क्षणिकाएं (मेरे ख़याल )
(१)
कई दिनों से
सफ़ेद चादर के फंदे ने
गला घोंट रखा था
आज धूप से गले मिलकर
खुल के रोये चिनार
(२)
आज सिसकियाँ सुनी
तो पता चला
कि इस घर की बुनियाद
ही आसुओं में मिलाई हुई
कंक्रीट से भरी थी
(३)
हाथी दांत की चूड़ियाँ
बाजार में देखी तो ख़याल आया
कि कहीं कल इंसान
की अस्थियों के लाकेट
तो नहीं आ जायेंगे बाजार में
(४)
आज क्यूँ इसकी गर्दन
झुकी है
कल ही तो इस फूल ने
खिलने का वादा किया था मुझसे
कौन आया था यहाँ ??
(५)
आज मेरी छाँव में बैठ लो दोस्तों
कल तो टुकड़े- टुकड़े होकर
किसी शहर चला जाऊँगा
ढूँढना हो तो ढूँढ लेना
किसी के स्वागत कक्ष में
तुमको गोदी में बड़े प्यार से बिठाऊंगा
(६)
तेरी इस ग़ज़ल के कुछ शब्दों से
लहू रिस रहा है
लगता है कहीं से बहुत बड़ी
चोट खाकर आये हैं
तभी तो दर्द से बरखे
यूँ फडफडा रहे हैं
(७)
दिल में पड़े दर्द के जालों ने कहा
अब तो संभल लो
पाँव के रिसते हुए छालों ने कहा
अब रास्ता बदल लो
*******
आज सिसकियाँ सुनी
जवाब देंहटाएंतो पता चला
कि इस घर की बुनियाद
ही आसुओं में मिलाई हुई
कंक्रीट से भरी थी ……………वाह बहुत सुन्दर क्षणिकायें ………सभी एक से बढकर एक्।
बहुत खूबसूरत और कड़वी सच्चाई से रूबरू कराते आप के ख्याल ...
जवाब देंहटाएंऔर ख्यालों में आप के सवाल ..?
मुबारक हो !
आप की लेखनी को
शुभकामनाएँ!
बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
जवाब देंहटाएंअभिव्यक्ति.....
वाह वाह वाह.................
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर क्षणिकाएँ...........
आज क्यूँ इसकी गर्दन
झुकी है
कल ही तो इस फूल ने
खिलने का वादा किया था मुझसे
कौन आया था यहाँ ??
सभी बेहतरीन.......................
सादर.
अति सुन्दर क्षणिकाएँ........
जवाब देंहटाएंसभी बेहतरीन क्षणिकाएँ है.....
नैशार्गिक रचना .... आत्मिक बल प्रदान करती हुयी .... शुभ कामनाएं....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सभी क्षणिकाएं,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....
हाथी दांत की चूड़ियाँ
जवाब देंहटाएंबाजार में देखी तो ख़याल आया
कि कहीं कल इंसान
की अस्थियों के लाकेट
तो नहीं आ जायेंगे बाजार में ... हो सकता है या हो भी गया हो
आज क्यूँ इसकी गर्दन
जवाब देंहटाएंझुकी है
कल ही तो इस फूल ने
खिलने का वादा किया था मुझसे
कौन आया था यहाँ ??
उफ़ ! गहन अभिव्यक्ति ।
सभी क्षणिकाएं बहुत सुन्दर हैं....आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर क्षणिकाएं.....
जवाब देंहटाएंगहन एवम सुंदेर श्रणिकायॅ ...आभार ...!
जवाब देंहटाएंहाथी दांत की चूड़ियाँ
जवाब देंहटाएंबाजार में देखी तो ख़याल आया
कि कहीं कल इंसान
की अस्थियों के लाकेट
तो नहीं आ जायेंगे बाजार में
...अब इससे आगे विचार कणिकाएं क्या होंगी ,लाज़वाब कर दिया आपने . .....कृपया यहाँ भी पधारें -
ये है बोम्बे मेरी जान (अंतिम भाग )
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
ये है बोम्बे मेरी जान (अंतिम भाग )
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_22.हटमल
ram ram bhai
मंगलवार, 22 मई 2012
:रेड मीट और मख्खन डट के खाओ अल्जाइ -मर्स का जोखिम बढ़ाओ
http://veerubhai1947.blogspot.in/
खूबसूरत क्षणिकाएं ..एक से बढ़कर एक ..
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी को छूती
बहुत सशक्त क्षणिकाएं हैं...तीसरी क्षणिका ने सोचने पर मजबूर कर दिया...
जवाब देंहटाएंनीरज
आज क्यूँ इसकी गर्दन
जवाब देंहटाएंझुकी है
कल ही तो इस फूल ने
खिलने का वादा किया था मुझसे
कौन आया था यहाँ ??
बहुत ही सशक्त भाव लिए उत्कृष्ट प्रस्तुति।
हाथी दांत की चूड़ियाँ
जवाब देंहटाएंबाजार में देखी तो ख़याल आया
कि कहीं कल इंसान
की अस्थियों के लाकेट
तो नहीं आ जायेंगे बाजार में ..
बहुत ही संवेदनशील रचना ... गहराई मिएँ जा के लिखी हैं सब क्षणिकाएं ... जीवन कों देखने का नया द्रिस्तिकों है ये रचना ...
बहुत बढ़िया शब्दचित्र प्रस्तुत किये हैं आपने!
जवाब देंहटाएंबहुत ही गहरे उतरती क्षणिकायें..
जवाब देंहटाएंबहुत हीं सुन्दर क्षणिकाएं....
जवाब देंहटाएंसभी क्षणिकाएं सिर्फ पढ़ने में सुंदर नहीं, ढेरों ज्ञान समेटे हैं अपने अंदर
जवाब देंहटाएंकहीं कल इंसान
जवाब देंहटाएंकी अस्थियों के लाकेट
तो नहीं आ जायेंगे बाजार में
इन पंक्तियों में दर्द भरा है, जो आक्रोश भरा है उसकी अभिव्यक्ति इस बिम्ब के माध्यम से काफ़ी सशक्तता से अभिव्यक्त हो रहा है।
bahut sundar yekse yek ......
जवाब देंहटाएंहर क्षणिका गंभीरता लिए हुये .... हाथी दाँत के कंगन हों या लकड़ी से बना फर्नीचर .... बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन रचना....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग
विचार बोध पर आपका हार्दिक स्वागत है।
सभी क्षणिकाएं गंभीर बात कहने में सक्षम ..... भले ही वो हाथी दाँत की चूड़ी की बात हो या फर्नीचर की
जवाब देंहटाएंकई दिनों से
जवाब देंहटाएंसफ़ेद चादर के फंदे ने
गला घोंट रखा था
आज धूप से गले मिलकर
खुल के रोये चिनार..
......जीवित कर दिया आपने नज़ारा ......बहुत ही सुन्दर कल्पना राजेशजी
कई दिनों से
जवाब देंहटाएंसफ़ेद चादर के फंदे ने
गला घोंट रखा था
आज धूप से गले मिलकर
खुल के रोये चिनार
....बहुत खूब ! सभी क्षणिकाएं लाज़वाब...
आज सिसकियाँ सुनी
जवाब देंहटाएंतो पता चला
कि इस घर की बुनियाद
ही आसुओं में मिलाई हुई
कंक्रीट से भरी थी
ये खास पसंद आई .
वैसे सभी क्षणिकाएं भावपूर्ण हैं.
गज़ब की क्षणिकाएं ....
जवाब देंहटाएंदिल में पड़े दर्द के जालों ने कहा
जवाब देंहटाएंअब तो संभल लो
पाँव के रिसते हुए छालों ने कहा
अब रास्ता बदल लो
rasta badalne ki jarurat nhi hai ji, bahut pyar likhti hai .sadar naman 1
लिखते बहुत हैं
जवाब देंहटाएंमैं भी वो भी
पर एक अच्छी कविता
है प्रसव पीड़ा सी ही
bahut acchi kavita hai
जवाब देंहटाएंजीवन की सार्थक अभिव्यक्ति लिए हुए सुन्दर रचनाएं।
जवाब देंहटाएं