हरित तरु अरु प्रकृति न्यारी |व्याधि निवारक आपद हारी ||
गर्भस्थ शिशु सम जीव विस्तारी |करे सुपोषण ज्यों महतारी ||
वन,उपवन,गिरी वय संचारी |होई है अधम जो चलावै आरी ||
कुपित प्रकृति रूप जेहि धारे |ताहि कहौ फिरि कौन उबारे ||
स्नेह जल सींचि-सींचि तरु बोई |प्राण सफल आनंद फल होई ||
जबहिं कठिन परिश्रम कीजै |तबहिं सम- सरस फल लीजै ||
सुपर्यावरण में ज्योति तुम्हारी |इदं उक्तिम ग्रहेयु नर नारी ||
जबहिं कठिन परिश्रम कीजै |तबहिं सम- सरस फल लीजै ||
जवाब देंहटाएंBahut Sunder....
सच है..प्रेम से सींचें तब ना मीठे फल पायेंगे.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर राजेश जी.
sundar rachana
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवन,उपवन,गिरी वय संचारी |होई है अधम जो चलावै आरी ...
जवाब देंहटाएंसच कहा है .. पर आज कोई इस बात कों नहीं सुनना चाहता ... जब पानी सर से गुज़र जायगा तब जागेंगे ...
कुपित प्रकृति रूप जेहि धारे |ताहि कहौ फिरि कौन उबारे ||
जवाब देंहटाएंसुन्दर है पर्यावरणी चौपाई .
बहुत सुन्दर बनी हैं चौपाई....
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रयास, अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव...
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव समेटे चौपाई..
जवाब देंहटाएंपर्यावरण के प्रति जागरूकता ज़रूरी है...सुन्दर चौपाइयां...
जवाब देंहटाएंसुविषय सुगढ़ रची चौपाई।
जवाब देंहटाएंसादर।
चौपाई अच्छी लगी । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...आभार
जवाब देंहटाएंये किस कवि की कल्पना का चमत्कार है
जवाब देंहटाएंये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार!
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...आभार
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