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गुरुवार, 26 मई 2011

तुम्हे याद तो होगा

                     जब तोड़ रही थी दम तेरे क़दमों में मेरी वफ़ा 
                   हिज्रेगम से भरी मेरी उन  आँखों की वीरानी तो याद होगी !

                   चट्टानों से सर फोड़ कर जब जा रही थी लहर 
                   उसकी जख्मों से भरी वो पेशानी तो याद होगी !

                   खोल के देख अपने दिल की किताब 
                  किसी बरखे में छुपी मेरी निशानी तो याद होगी !

                   जब दफन किया था मेरे जिस्म को तेरे ही दर के सामने 
                   उस कब्र पे लिखी मेरी कहानी तो याद होगी !!

12 टिप्‍पणियां:

  1. उफ़ …………क्या खूब गज़ल लिखी है दर्द ही दर्द भर दिया है।

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  2. बहुत खूब ...शुभकामनायें !!

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आप गजल भी अच्छी लिखतीं हैं!

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  4. जब दफन किया था मेरे जिस्म को तेरे ही दर के सामने
    उस कब्र पे लिखी मेरी कहानी तो याद होगी !!बहुत ही बढ़िया

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  5. लाजवाब लिखा है आपने.
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

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  6. जब दफन किया था मेरे जिस्म को तेरे ही दर के सामने
    उस कब्र पे लिखी मेरी कहानी तो याद होगी !bahut sunder najm.dil ko choo cai aapki prastuti.badhaai aapko.


    please visit my blog and leave a comment also.aabhaar

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  7. "खोल के देख अपने दिल की किताब
    किसी बरखे में छुपी मेरी निशानी तो याद होगी !"

    बहुत सुन्दर व् ज़ज्बाती रचना के लिए शुक्रिया..

    आशु

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  8. लाजवाब सुन्दर ज़ज्बाती बहुत ही बढ़िया

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