गैस होगी न कोयला होगा
चूल्हा ग़मजदा मिला होगा
पेट रोटी टटोलता हो जब
थाल में अश्रु झिलमिला होगा
भूख की कैंचियों से कटने पर
सिसकियों से उदर सिला होगा
चाँद होगा न चांदनी होगी
ख़्वाब में भी तिमिर मिला होगा
भोर होगी न रौशनी होगी
जिंदगी से बड़ा गिला होगा
लग रहा क्यूँ हुजूम अब सोचूँ
मौत का कोई काफिला होगा
बेबसी की बनी कब्र पर ही
नफरतों का पुहुप खिला होगा
अब बता "राज"दोष है किस का
जिंदगी ने उसे छ्ला होगा
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जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति |
आभार दीदी ||
waah bahut sundar gajal .....man prasann ho gaya :) badhai aapko
हटाएंबहुत बढ़िया समसामयिक ग़ज़ल!
जवाब देंहटाएंबेबसी की बनी कब्र पर ही
जवाब देंहटाएंनफरतों का पुहुप खिला होगा ...सच है
लग रहा क्यूँ हुजूम अब सोचूँ
जवाब देंहटाएंमौत का कोई काफिला होगा .. वाह
उम्दा गजल साँझा करने का आभार
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत हैं ...
http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/11/blog-post_6.html
आम आदमी ही बस बेबस है ...सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंयथार्थ कहती बेहतरीन रचना....
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जवाब देंहटाएंलग रहा क्यूँ हुजूम अब सोचूँ
मौत का कोई काफिला होगा .. वाह,,,बहुत खूब
बेहतरीन समायिक गजल,,,,
RECENT POST:..........सागर
पेट रोटी टटोलता हो जब
जवाब देंहटाएंथाल में अश्रु झिलमिला होगा
वाह ..सुन्दर ग़ज़ल.
जाने कितनी तरह छला जाता है जीवन
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