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शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

बोलते चित्र (कुण्डलिया छंद )

धरती अम्बर से कहे ,सुना प्रेम के गीत 
अम्बर धरती से कहे, दिवस गए वो बीत 
दिवस गए वो बीत ,मुझे कुछ दे दिखाई 
 कोलाहल के  बीच,तुझे देगा न सुनाई 
जन करनी के  दंड, अभागिन प्रकृति भरती   
किस विध मिलना होय ,तरसते अम्बर धरती


लेकर तिनका चौंच में ,चिड़िया तू  कित  जाय 
नीड महल का छोड़ केघर किस देश बसाय 
घर किस देश बसाय ,सभी  सुख साधन छोड़े
ऊँची चढ़ती  बेल ,  धरा पे वापस   मोड़े 
           देख बिगड़ते  बालमाथ  मेरा  है  ठनका                
  जाती  अपने  गाँव , चौंच में लेकर तिनका 

पानी है संजीवनी ,मत करना बरबाद 
बूँद बूँद है कीमती ,इतना रखना याद 
इतना रखना याद ,करते रहोगे दोहन  
नदियाँ जायँ सूखबचे कैसे  संसाधन 
नीर  पादुका रोय   ,देख तेरी मनमानी
 धरा गर्भ को भेद  , कहाँ से आये पानी 
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18 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर कुंडलियो संग सुंदर काम की बातें !
    शुभकामनायें!

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  2. अर्थ पूर्ण दोहे और कुंडली .

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  3. राजेश कुमारी जी, आपकी कुण्डलियाँ बहुत सुंदर लगीं.

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  4. वाह ... बेहतरीन भावों का संगम ...
    आभार इस उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति के लिये

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  5. क्या बात है राजेश जी..
    सभी कुण्डलियाँ लाजवाब है,..
    बहुत बढ़ियाँ...
    :-)

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  6. बहुत ही बढ़िया कविता है.... खास-कर अंतिम की जो लाइनें लिखी गयी है... पानी के बारे में आने वाले भविष्य की समस्या का वर्णन किया गया है...
    बहुत सुन्दर कविता लिखी है.....

    मेरी नयी पोस्ट दान का हिसाब को भी जरूर पढ़े

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  7. बहुत ही सुन्दर शब्दों में व्यक्त की प्रकृति की पीर..

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  8. बेहद खूबसूरती के साथ रचे दोहे और कुण्डलियाँ वाह क्या कहना आपका जवाब नहीं।
    सादर अरुन शर्मा
    www.arunsblog.in

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  9. सुन्दर दोहे.
    सुन्दर सुसज्जित पोस्ट .

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  10. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (25-11-2012) के चर्चा मंच-1060 (क्या ब्लॉगिंग को सीरियसली लेना चाहिए) पर भी होगी!
    सूचनार्थ...!

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  11. बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति...

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  12. बहुत अच्छा और सार्थक सन्देश देती हुई चित्रमय कुंडलियाँ .

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  13. बहुत सुंदर ..अच्छा लगा आपको पढ़ना ...

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  14. सुंदर-सरस-सुहावनी
    सदय सदृश संजीवनी।

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  15. बेहद सुंदर चित्रमय कुडलियाँ ।

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  16. पहली वाली तो बहुत ही मारमिक और शानदार । धरती अंबर का भावभीना संवाद .

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