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शनिवार, 23 जुलाई 2011

ख़्वाब एक ग़ज़ल

तू एक ऐसा ख़्वाब है 
जो जिस्म में ढलता ही नहीं 
मेरा ही हमसाया 
जो मेरे साथ चलता ही नहीं !
किस  मोम  से  बना  है तू 
जो मेरे ताप से पिघलता ही नहीं 
कितना बे असर हो गया है दिल मेरा 
जो लाख संभाले  से संभलता ही नहीं !
क्या तुझको मिलेगा 
यूँ ख़ाक में मिलाके मुझे 
तन्हाई में यूँ वक़्त गुजरता ही नहीं !
कैसे नासूर बन गए हैं 
ये जख्म मोहब्बत के 
कि कोई मरहम अब इनपे 
ठहरता ही नहीं !!

21 टिप्‍पणियां:

  1. दर्द भरी रचना ...गज़ब के भाव और प्रस्तुति

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  2. बहुत गहरी रचना, मरहम न ठहरना पीड़ा का स्थायीकरण है।

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  3. कैसे नासूर बन गए हैं
    ये जख्म मोहब्बत के
    कि कोई मरहम अब इनपे
    ठहरता ही नहीं !!
    bahoot khoob aur rachanaa.badhaai aapko

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  4. इस कविता की संवेदना मन को छूती है।

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  5. बहुत ही भावप्रणव रचना लिखी है आपने!
    राजेश कुमारी जी!
    इसे तो लाजवाब ही कहूँगा!

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  6. रचना के बिम्ब बहुत रोचक है शब्द संयोजन बहुत कमाल का खुबसूरत रचना

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  7. किस मोम से बना है तू
    जो मेरे ताप से पिघलता ही नहीं

    bhaavon ka bahut sunder chitran kiya hai, achha laga aapko padhna.

    shubhkamnayen

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  8. गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! बधाई!

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  9. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत गहरी रचना...!

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  10. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग इस ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो हमारा भी प्रयास सफल होगा!

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  11. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत गहरी रचना...!

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  12. मेरा ही हमसाया
    जो मेरे साथ चलता ही नहीं !
    मैडम यह इत्तेफाक ही है की ,मैंने भी आज आपको पहली बार पढ़ा ,लगा मुझे देर हो गयी है , सुन्दर शब्द चयन ,भावात्मक कथ्य , अतिरंजितता से दूर संवेदना,सराहनीय है ../शुभकामनायें जी /

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  13. मन को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  14. पीड़ा जीवन का स्थाई भाव है .सुख धूप छाँव सा ठहरता कहाँ है .भाव -अनुभाव -विभाव ज़िन्दगी की आरोह अवरोह चाहत का मनोहारी चित्रण .बिम्ब विधान अभिनव .बहुत अच्छी रचना .

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  15. कैसे नासूर बन गए हैं
    ये जख्म मोहब्बत के
    कि कोई मरहम अब इनपे
    ठहरता ही नहीं !!

    wow ! great expression !

    Loving the ghazal .

    .

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  16. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  17. कुछ गहरे जख्मों की दास्तान है ... एक गहरा एहसास जो मिटता नहीं ...

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  18. दर्द को शब्दों में खूबसूरती से ढाला है आपने.

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