It was downpour that night,birds in their nest were squeaking whole night.that tree was just behind my room,I could not sleep because of my sympathetic emotions for tiny helpless birds....those thoughts came up in this way....
आंधी और तेज बारिश के बाद
बादलों ने कहर बरपाया
दामिनी ने उपद्रव मचाया
टहनी चटकी पात पात
नभचर रोये सारी रात
दरख्त का कन्धा टूट गया
अपना घरोंदा छूट गया
माँ कैसे अब भरण बसर होगा ?
.....पुनः जतन करना होगा !
तेरी कोमल कम्पित काया
पंख मेरे अब तेरी छाया
इनमे छुपाकर रख लूं तुझको
निज तन की ऊष्मा देदू तुझको
माँ तेरा तन कैसे गरम होगा ?
.....पुनः जतन करना होगा !
माँ मैं तेरी कोख का जाया
मैं समझूं हर तेरी माया
दाना दुनका नहीं मांगूंगा मैं
बिन चुगे अब रह लूँगा मैं
तुझे करना न कोई अब श्रम होगा
.....मेरे नन्हे पुनः जतन करना होगा !
देखो माँ सूरज उग आया
आलोक से तेरा भाल गर्माया
मैं भी बाहर जाऊँगा
तेरा हाथ बठाऊंगा
तेरा गम सब हरना होगा
माँ मुझको अब उड़ना होगा
......पुनः जतन करना होगा !!!!
sundar prastuti,
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारें :-
अकेला कलम
Satya`s Blog
Bahut sunder. Ek ashawadi kawita. Ek do typological galtiyan hain sudhar lijiye kawita ka prawah achcha ho jayega.
जवाब देंहटाएंbahar aur bataoonga.
Aap mere blog par aaye kawita par tippani kee abhar.
जवाब देंहटाएंek umda rachna......
जवाब देंहटाएंbahut hi khoob,,,,,,
A Silent Silence : Shamma jali sirf ek raat..(शम्मा जली सिर्फ एक रात..)
Banned Area News : Rare book on political and economic history of India digitized
Kitna Acha likhti hain aap
जवाब देंहटाएंMere man par lot gaye hain saamp
bachey ke man ki baat ko aapney itne khoobsurat dang se vaikat kiya hai ki mujhe laga ki aap hi apni maa se batey kar rahe ho.