पहाड़ जैसी जिंदगी वो चार दिनों में जी गया
हम दो घूँट पी न सके वो सारा समुंदर पी गया !
वो उन राहों पर दौड़ गया जिन राहों पर हम चल न सके ,
जाते हुए सब को बोल गया की हम आँख में आंसू भर न सके
वो व्यथित ,धहकते सीनों में कुर्बानी के अंकुर बो गया
हम देखते ही रह गए वो तिरंगा ओढ़ कर सो गया !
शोलों से भरा जज्बा पाषाण सा जिगर रखता था
हम बोने बन कर रह गए वो जाते हुए आसमा छू गया !!
बन्दी है आजादी अपनी, छल के कारागारों में।
जवाब देंहटाएंमैला-पंक समाया है, निर्मल नदियों की धारों में।।
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मेरी ओर से स्वतन्त्रता-दिवस की
हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें!
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वन्दे मातरम्!
सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंveryyyyyyyyyyyyy niceeeeeeeeeee kavita
जवाब देंहटाएंveryyyyyyyyyyyyy niceeeeeeeeeee kavita
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