तुम यहीं होते हो आसपास मगर न जाने क्यों
लगता है ये शाम अधूरी है !
तुम हँसते हो दिल खोलकर मगर न जाने क्यों
लगता है ये मुस्कान अधूरी है !
तुम कहते हो कुछ ओर ,आँखे बंया करती हैं कुछ ओर
जाने क्यों लगता है कोई बात अधूरी है !
रोज मिलते हो ,हाल बयां करते हो
मगर लगता है ये पहचान अधूरी है !
हम भी होते हैं तुम भी होते हो .मगर न जाने क्यों
लगता है जैसे जनम की दूरी है !!!
अच्छी प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम आपका तहे दिल से शुक्रिया अपनी बहुमूल्य टिप्पणी और समय देने के लिए,
साथ ही उत्साह वर्धन तथा ब्लॉग अनुगमन के आमंत्रण का भी बहुत-बहुत धन्यवाद !!