तिल-तिल जलती रही विभावरी
लावा द्रगों से बहता रहा,
बदन को नोचती रही मजबूरियां
चिन्दा चिन्दा कलेजा फटता रहा !
शुष्क हुआ क्षीर का सोता,
भूख से शिशु रोता रहा!
मरता रहा कोख में स्त्रीत्व,
पुरुषत्व दंभ भरता रहा !
लुटती रही अस्मतें,
विधाता मूक दर्शक बनता रहा!
गरीबी चीरहरण करती रही,
दूर खड़ा जमाना हंसता रहा !
मार्मिक ....गहन अभिव्यक्ति ....सोच में डूब गया मन ...
जवाब देंहटाएंअपने आँसू आँसू अपने ही हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंसच्चाई को कहती विचारणीय रचना
जवाब देंहटाएंउफ़ …………भयावह सच्चाई की सटीक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंअंतत : नारी को अनेकों तरीके से प्रताड़ित होना पड़ता है .
जवाब देंहटाएंमार्मिक प्रस्तुति .
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआज की कड़वी सच्चाई को बयान कर रही है ये ... आक्रोश की अभिव्यक्ति है ...
जवाब देंहटाएंमार्मिक!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन।
जवाब देंहटाएंसादर
मार्मिक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर संवेदनशील रचना
जवाब देंहटाएंसादर बधाई....
विधाता मूक दर्शक बनता रहा!
जवाब देंहटाएंक्या वास्तव में विधाता मूक दर्शक बना रहता है,राजेश जी ?
या हमारे ही कर्मों और सोच का परिणाम है सब.
अति सुन्दर संवेदनशील प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई.
बहुत दर्द भरी रचना ....सच का आईना ..........आभार
जवाब देंहटाएंaah!!!!!!!dar bhri kavita.....dil ko chhoo gayi
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं
बहुत सार्थक व सशक्त रचना, आभार !
जवाब देंहटाएंuff..kam shabdon me bahut kuchh....
जवाब देंहटाएंशुष्क हुआ क्षीर का सोता,
जवाब देंहटाएंभूख से शिशु रोता रहा!
मरता रहा कोख में स्त्रीत्व,
पुरुषत्व दंभ भरता रहा !
सटीक पंक्तियाँ! गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ मार्मिक रचना!
जलती रही विभावरी , वाह क्या शानदार रचना है.
जवाब देंहटाएंसत्य को उजागर करती रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक और सटीक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति!...
जवाब देंहटाएंsimply fantastic n awesome !!
जवाब देंहटाएंKudos to u :)
Very touching creation !....A bitter fact is revealed beautifully.
जवाब देंहटाएंकड़वे सच को उजागर करती मार्मिक रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंGyan Darpan
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खूबसूरत से मर्माहत करने वाली विडंबना को प्रस्तुत किया है...
जवाब देंहटाएंगरीबी चीरहरण करती रही,
जवाब देंहटाएंदूर खड़ा जमाना हंसता रहा !
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति.
gahre bhaw
जवाब देंहटाएंतिल-तिल जलती रही विभावरी
जवाब देंहटाएंलावा द्रगों से बहता रहा,
बदन को नोचती रही मजबूरियां
चिन्दा चिन्दा कलेजा फटता रहा !... aah !
नारी का दर्द ऊंडेलती कविता.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुदर कविता ... एक दर्द जबरदस्त एक छिपी सच्चाई ...
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