छंदत्रिभंगी
जोड़ो चार हाथ ,अब एक साथ , नव ब्रह्मांड उठा लाओ
रख अडिग विश्वास ,अविरल प्रयास, भूमंडल पर छा जाओ
कल धरा सँवारे हाथ तुम्हारे , ,मन में प्रण कर आ जाओ
जो देश बांटती ,धरा काटती , वो दीवारें ढा जाओ
दुर्मिल सवैया
दस हाथ जहां जुड़ते मन से ,ब्रह्माण्ड वहीँ झुकता बल से
धुन ख़ास रहती मन में ,हर काम वहीँ सधता हल से
अवधान बिना अभिप्राय बिना , कुछ जीत नहीं सकता छल से
सहयोग बिना सदभाव बिना , खुद नीर नहीं उठता तल से
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बहुत बढ़िया प्रस्तुति है |
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें दीदी-
बहुत प्रभावी रचनाएँ .....शुभकामनायें ....
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया.प्रस्तुति ...शुभकामनायें ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट अनुभूति : नई रौशनी !
नई पोस्ट साधू या शैतान
सुंदर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंदस हाथ जहां जुड़ते मन से ,ब्रह्माण्ड वहीँ झुकता बल से
जवाब देंहटाएं.
एक अकेला थक जाएगा मिल कर बोझ उठाना
सुंदर सृजन !
बचपन
संघे शक्ति कलियुगे
जवाब देंहटाएंमिल के कार्य किया जाए तो सफलता जरूर मिलती है ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ...
sunder prastuti.
जवाब देंहटाएंआदरणीया राजेश कुमारी जी बहुत सुन्दर छंद ..भाव प्रबल ..जोश दे जाती है ये रचनाएं
जवाब देंहटाएंभ्रमर ५
सहयोग बिना सदभाव बिना , खुद नीर नहीं उठता तल से
जवाब देंहटाएं...वाह! बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...
अवधान बिना अभिप्राय बिना , कुछ जीत नहीं सकता छल से
जवाब देंहटाएंवाह ...
प्रभावशाली कलम है आपकी !
बधाई !