दीवार तग़ाफुल की ये ढाओ तो सही
इक बाँध रिफ़ाकत का बनाओ तो सही
आ पाक मुहब्बत में मिटा दें सरहदें
इस ओर जरा हाथ बढ़ाओ तो सही
हैरान परेशान खड़े हो इस कदर
ऐ- जान जरा बात बताओ तो सही
मैं पार तेरे नाम से कर जाऊं तपिश
सैलाब- ए- अंगार बहाओ तो सही
वीरान निगाहों में तेरी लिख दूँ ग़ज़ल
अशआर गुरेज़त के सुनाओ तो सही
तामीर करूँ ताज़महल तेरे लिए
इक नींव तकारुब की बिछाओ तो सही
मैं राज़ छुपा दिल में ही
रख लूँगी सदा
पर्दा –ए- हकीक़त को उठाओ तो सही
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तगाफ़ुल =उपेक्षा
रिफ़ाकत= दोस्ती.
गुरेज़त= विरक्ति
तकारुब= समीपता
तामीर =निर्माण
wah,bahut khub....
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत खूबसूरत गज़ल
जवाब देंहटाएंइस ओर जरा हाथ बढ़ाओ तो सही
जवाब देंहटाएंक्या बात है राजेश जी !!
बधाई !
वाह... बेहद खुबसूरत ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंवाह...बहुत खूबसूरत
जवाब देंहटाएं"नादान परिंदे ब्लॉगर" - हिंदी का एक नया ब्लॉग संकलक" पर अपनी उपस्तिथि दर्ज कराकर हमे इसे सफल ब्लॉगर बनाने में हमारी मदद करें। अपने ब्लॉग को जोड़ें एवं अपने सुझाव हमे बताएं
जवाब देंहटाएंनमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (08-09-2013) के चर्चा मंच -1362 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
जवाब देंहटाएंवाह ..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना...
अति उत्तम...
:-)
वीरान निगाहों में तेरी लिख दूँ ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंअशआर गुरेज़त के सुनाओ तो सही,,,
वाह वाह !!! बहुत सुंदर गजल ,,,
RECENT POST : समझ में आया बापू .
बेहतरीन रचना..
जवाब देंहटाएंबहोत खूब..!!!
जवाब देंहटाएंवाह ... खूबसूरत गज़ल है ... लाजवाब शेर ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
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