कर्ण पट चीरता हुआ संगीत
रक्तचाप बढाता हुआ शोर
आँखों की पुतलियों पर
कहर ढाती रौशनी
नथुनों पर हावी
होती मय की
गंध
संस्कारों पर आघात करते
लडखडाते क़दमों से
कालीन पर थिरकते
रंगे पुते चेहरे
ओढ़े
अध् नंगे जिस्म
छनछनाते हुए कट गिलास
कहकहा लगाकर
कुछ कागजों पर
हस्ताक्षर करते
एक दूजे से
हाथ मिलाते
कुटिल मुस्कान के साथ
कुछ उपहारों का आदान प्रदान करते लोग
फिर अचानक एक
दूर कौने में
एक कप सूप
और एक रोटी
के लिए इन्तजार करते
हुए मूर्ती वत
बैठे मेरी और
आकर मुझे बधाई
देते
और याद दिलाते
कि
मैं अस्सी बरस का हो गया हूँ
और मैं अपने
भविष्य
की जुल्मत में बेकल
आगे
बचे
सफ़र की
लकीर को हथेली
से
अपने नाखून से
खुरचने लगता
और रंगमच के
असफल चरित्र निर्माता
सा नेपथ्य में
अपनी गल्तियों को
टटोलता
हुआ अनमना
सा कहता थैंक्स
!!!
चलो शुक्रिया जी आपका ...कल के मेरे अहसास आपने आज लिख दिए कोई तो है ,,जो हम जैसा भी सोचता है :-)
जवाब देंहटाएंआदरणीय अशोक जी हम सब एक ही नाव के मुसाफिर हैं
हटाएंसुंदर अभिव्यक्ति,,
जवाब देंहटाएंगणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाए !
RECENT POST : समझ में आया बापू .
सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंगणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाए !
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sunder,ganesh chahturthi ki shubhkamnayen
जवाब देंहटाएंsunder,ganesh chahturthi ki shubhkamnayen
जवाब देंहटाएंजो हो गया है वो तो है
जवाब देंहटाएंजो दे गया वो बस सोच है!
सुंदर !
आयु के मनोविज्ञान को टटोलती पंक्तियाँ..
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