खुरदुरी हथेलियाँ
कटी फटी उंगलियाँ
पच्चीस की उम्र में
पचास के जैसी प्रौढ़ता की
चेहरे पर लकीरें
दस बीस इंटों से भरा
तसला सर पर ढोती
बीच- बीच में दूर एक झाड़ी पर
बंधे पुराने चिथड़ों से बने
झूले पर नजर डालती ,
ना जाने उसका नन्हा
कब भूख से बिलबिलाने लगे
सोचकर अपने भीगे ब्लाउज को
अपनी फटी धोती के पल्लू से छुपाती
चढ़ी जा रही है
हर सीढ़ी को अपनी किस्मत
की कहानियाँ सुनाती
दूर कहीं से आवाज आ रही है
मजदूर एकता जिंदाबाद
मजदूर दिवस की बधाई हो !!!
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वाह राजेंद्र भाई बहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंमजदूरों के जीवन को सच्ची तौर पर बयां करती रचना
जवाब देंहटाएंमजदूर दिवस पर सार्थक
उत्कृष्ट प्रस्तुति
विचार कीं अपेक्षा
आग्रह है मेरे ब्लॉग का अनुशरण करें
jyoti-khare.blogspot.in
कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?
सुख के बादल उनके भी हों..
जवाब देंहटाएंनिराला जी की स्मृति कराती पंक्तिया .....
जवाब देंहटाएंअरुन भाई आप एक गलती कर गये ये रचना राजेश कुमारी जी की है न कि राजेन्द्र जी का
हर दिवस की विशिष्टता,
जवाब देंहटाएंयह शिष्ट समाज
एक दिन के लिए याद रखता है
दिवस की तो बस शाम होती है,
उसके बाद वह सो जाता है
कुंभकर्णी नींद से दो गुना
गुमनाम होकर ...
पूरे एक बरस तक के लिए
गुमनामी की चादर ओढ़कर
आपकी यह प्रस्तुति व प्रयास सराहनीय है
सादर
मार्मिक रचना। लेकिन वे तो अभी भी अंजान हैं मजदूर दिवस से।
जवाब देंहटाएंमजदूर दिवस पर सार्थक सटीक प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: मधुशाला,
बहुत सार्थक रचना .......
जवाब देंहटाएंमजदूरों की सचाई बयां करती रचना!
जवाब देंहटाएंडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
lateast post मैं कौन हूँ ?
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बहुत मार्मिक सटीक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंsunder rachana
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