सखी री मोरे अंगना में धूप खिली आज
मन की प्रणय पाती साजन की मिली आज
हुआ यकायक मुझे
अंदेशा
भेजा उसने कोई संदेशा
नेह नीर बिना शुष्क हुई थी
देह प्रीत बिना रुष्ट हुई थी
लिपट पवन संग हिय तरु की डारि हिली आज
सखी री मोरे अंगना में धूप खिली आज
आह्लादित मन लहका- लहका
प्रीत उपवन है महका- महका
मिले गले
जब भ्रमर औ कलिका
हया दीप संग जलती अलिका
विरहाग्नि से हुई विक्षत चुनरिया सिली आज
सखी री मोरे अंगना में धूप खिली आज
जाने क्यों ये मन भरमाया
खुदी में ढूँढू उसका साया
इत - उत देखूं लगे वो आया
झट चौखट पे दीपक जलाया
सागर मन मध्य मौजों की खुशियाँ रिली आज
सखी री मोरे अंगना में धूप खिली आज
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बहुत सुंदर भाव ...
जवाब देंहटाएंमधुर भाव लिए सुन्दर प्रेम गीत ...
जवाब देंहटाएंअहा, मन आह्लादित हो जाता है, आहट उनके आने की।
जवाब देंहटाएंविरहाग्नि से हुई विक्षत चुनरिया सिली आज
जवाब देंहटाएंसखी री मोरे अंगना में धूप खिली आज,,,
वाह बहुत खूब !!! राजेश जी बेहतरीन रचना,आभार,
RECENT POST : क्यूँ चुप हो कुछ बोलो श्वेता.
अत्यंत सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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bahut sundar geet..
जवाब देंहटाएंखुबसूरत अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंबहुत दिनन में प्रीतम पाए ,
जवाब देंहटाएंभाग जगे ,घर बैठे आए !
- कबीर .
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आदरणीया ||
अरे वाह! बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधूप की गर्माहट का अहसास कराती सुंदर भावभीनी रचना..
जवाब देंहटाएंbahut ehsaas se bhari pyari Rachna... Badhai
जवाब देंहटाएंखुबसूरत अभिवयक्ति *****आह्लादित मन लहका- लहका
जवाब देंहटाएंप्रीत उपवन है महका- महका
मिले गले जब भ्रमर औ कलिका
हया दीप संग जलती अलिका