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शनिवार, 25 अगस्त 2012

प्रलय---- कुकुभ छंद (16,14 मात्राएँ प्रत्येक चरण के अंत में २ दीर्घ मात्राएँ)


प्रदूषित करते ना थके तुम ,भड़क गई उर में ज्वाला 
क्रोधित हो कूद पड़ी गंगा ,सब कुछ जल थल कर डाला 
डूब गए घर बार सभी कुछ ,राम शिवाला भी डूबा 
कुपित हो गए मेघ देवता ,कोई नहीं है अजूबा 
राजस्थान ,असम,झाड़खंड,नहीं बची उत्तरकाशी 
प्रलय ये कभी नहीं सोचती ,कौन धरम कौनू भाषी
पर्वत पर्वत जंगल जंगल ,तुम चलाते  रहे आरी  
खूँ के आँसूं रोते हो अब ,आन पड़ी विपदा भारी 
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20 टिप्‍पणियां:

  1. खूँ के आँसूं रोते हो अब ,आन पड़ी विपदा भारी
    वाह क्या बात है, अति सुन्दर

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  2. waah rajesh kumari ji sach kaha aapne pralay kuch nahi dekhti ...............bahut sundar ek ek moti uttam

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  3. बहुत बढ़िया |
    सही आक्रोश |
    बधाई दीदी ||

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  4. पर्वत पर्वत जंगल जंगल ,तुम चलाते रहे आरी
    खूँ के आँसूं रोते हो अब ,आन पड़ी विपदा भारी

    कटु सत्य ...
    अब भी हम सम्हल जायें तो भला हो ...!!

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (26-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  6. ab pralay nahi lao jag me bhauti badio samhal jao,vdhvnsonmukhho rahi prakrit apne karmo se jag jao...en panktio se aap ki vehtarin rachana ka swagat hai

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  7. प्रकृति की नाराजी ना झेलनी पड़े तभी तक ठीक है ...
    आभार !

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  8. छंद में प्रलय को खूबसूरती से बाँधा है...मैं भी कुकुभ छंद लिखने का प्रयास करूँगी...आभार !!

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  9. वाह प्रदूषण के भीषण परिणाम को किस खूबसूरती से छंद बध्द किया है ।

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  10. It's a wonderful creation ma'am. Awesome...Awesome....Awesome !

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  11. प्रकृति के साथ खिलवाड़ के परिणाम तो भुगतने होंगे ,काट दिए सब पेड़ तो फिर क्यों ढूंढें छाँव .....काव्यात्मक प्रस्तुति टूटते पर्यावरण और पारितंत्र के परिणामों की ...बढ़िया पोस्ट .कृपया यहाँ भी पधारें -
    शनिवार, 25 अगस्त 2012
    काइरोप्रेक्टिक में भी है समाधान साइटिका का ,दर्दे -ए -टांग का
    काhttp://veerubhai1947.blogspot.com/

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  12. लखनऊ सम्मान मुबारक !
    ब्लोगर सम्मान मुबारक !कैंटन (मिशगन )के शतश :प्रणाम !नेहा एवं आदर सेवीरुभाई .
    बुधवार, 29 अगस्त 201
    मिलिए डॉ .क्रैनबरी से
    मिलिए डॉ .क्रैनबरी से

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  13. बहुत सुन्दर और सार्थक रचना...

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  14. हार्दिक धन्यवाद वीरेन्द्र शर्मा जी

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  15. अब भी चेतो...छंद-बंद का बेहद ख्याल रक्खा गया है...खूबसूरत रचना...

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