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सोमवार, 19 सितंबर 2011

थक गए हैं पाँव मुसाफिर

थक गए हैं पाँव मुसाफिर 
आ थोडा विश्राम कर लें 
इस धरा का बना बिछौना
ऊपर से आकाश ओढ़ लें !
           इस पथ पर पुष्प खिले थे 
           या कांटो का जाल था 
           हरित सघन बट छाया थी 
           या अंधड़ भूचाल था 
क्या पाया क्या खोया हमने 
आ थोड़ी ये गणना कर लें 
थक गए हैं पाँव मुसाफिर 
आ थोडा विश्राम कर लें !
             शांति ,सत्य ,सन्मार्ग ,समर्पण 
             आ कुछ उनकी खोज खबर लें 
             खो गए थे जो राहों में 
             आ उनको बाहों में भर लें !
भूल के अपने जख्मों को 
ये सोचो क्या खोया हमने 
याद करो किसके दिल पर 
आज मरहम लगाया हमने 
             खुद के लिए जिए थे अब तक 
             आ औरों की खातिर जी लें 
             अहम् का  नशा पिया था अब तक 
             आ औरों का दर्द भी पी लें !
             

25 टिप्‍पणियां:

  1. संघर्षों के बाद विश्राम आवश्यक है।

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  2. बहुत सुंदर मन के भाव और अभिव्यक्ति भी .....

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  3. खुद के लिए जिए थे अब तक
    आ औरों की खातिर जी लें


    वाह अप्रतिम रचना...बधाई स्वीकारें

    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  4. कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।

    जवाब देंहटाएं
  5. खुद के लिए जिए थे अब तक
    आ औरों की खातिर जी लें
    अहम् का नशा पिया था अब तक
    आ औरों का दर्द भी पी लें !

    बेहतरीन।

    सादर

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  6. हम जैसे मुसाफ़िर आराम नहीं करते, आराम तो आलसी लोग करते है।

    जवाब देंहटाएं
  7. कल 21/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  8. खुद के लिए जिए थे अब तक
    आ औरों की खातिर जी लें
    बेजोड भावो का सुन्दर संगम्……………बहुत पसन्द आयी रचना

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  9. खुद के लिए जिए थे अब तक
    आ औरों की खातिर जी लें
    अहम् का नशा पिया था अब तक
    आ औरों का दर्द भी पी लें !
    --
    आज इन्हीं भावनाओं का अकाल हो गया है!
    मगर आपने बहुत फिनव संदेश दिया है इस रचना में!

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  10. याद करो किसके दिल पर
    आज मरहम लगाया हमने
    वह , बहुत khoob ।
    सुन्दर rachna ।

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  11. खुद के लिए जिए थे अब तक
    आ औरों की खातिर जी लें
    अहम् का नशा पिया था अब तक
    आ औरों का दर्द भी पी लें !

    लाजवाब गीत बहुमूल्य विचार ...आभार संग्रहणीय

    जवाब देंहटाएं
  12. खुद के लिए जिए थे अब तक
    आ औरों की खातिर जी लें
    अहम् का नशा पिया था अब तक
    आ औरों का दर्द भी पी लें !

    सुंदर संदेश , अच्छी रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  13. भूल के अपने जख्मों को
    ये सोचो क्या खोया हमने
    याद करो किसके दिल पर
    आज मरहम लगाया हमने

    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ! सुन्दर सन्देश देती रचना !

    जवाब देंहटाएं
  14. sunder bhavon se saji rachna ......
    aabhar mere blog par aaneka ....

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  15. भूल के अपने जख्मों को
    ये सोचो क्या खोया हमने
    याद करो किसके दिल पर
    आज मरहम लगाया हमने
    खुद के लिए जिए थे अब तक
    आ औरों की खातिर जी लें
    यही सच्ची जिन्दगी है....
    बड़ी सुन्दर रचना....
    सादर बधाई...

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  16. खुद के लिए जिए थे अब तक
    आ औरों की खातिर जी लें
    मार्मिक रचना .... बधाई.

    बालसाहित्य का अनोखा संसार

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  17. क्या पाया क्या खोया हमने
    आ थोड़ी ये गणना कर लें
    थक गए हैं पाँव मुसाफिर
    आ थोडा विश्राम कर लें !

    जीवन का आकलन करती बहुत सुन्दर सारगर्भित रचना...बहुत सुन्दर चित्र संयोजन...बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  18. भूल के अपने जख्मों को
    ये सोचो क्या खोया हमने
    याद करो किसके दिल पर
    आज मरहम लगाया हमने
    खुद के लिए जिए थे अब तक
    आ औरों की खातिर जी लें
    अहम् का नशा पिया था अब तक
    आ औरों का दर्द भी पी लें !....कितनी नाज़ुक बात, कितनी आसानी से कह दिया ...

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  19. थक गयें हैं पाँव मुसाफिर।
    बहुत अच्छा।

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  20. khud k liye jiye the ab tak
    aa auron k liye jee len...
    waah... behad khoobsoorat rachna... sundar

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