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शनिवार, 17 सितंबर 2011

दो शाएरी



सोचा था आज तो कुछ कहेंगे लब
पर धडकनों के शोर में 
फिर से शब्द खामोश हो गए !!

शायद लटकाया था जमीं पर जानबूझ कर
 आँचल उसने 

जब तक हम उठाते वो दूर चले गए !

17 टिप्‍पणियां:

  1. ओह! धडकनों के शोर में,फिर से शब्दों का खामोश होना
    आंचल को उठाने से पूर्व उनका दूर चला जाना,अदभूत
    अभिव्यक्ति है आपकी राजेश जी.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आप आतीं हैं तो बहुत अच्छा लगता है.
    समय मिलने पर आईयेगा.

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  2. धड़कने अस्तित्व पर अधिकार कर लेते हैं।

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  3. धड़कनों के शोर में जुबां की ख़ामोशी...बहुत कुछ कह गई

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  4. सुन्दर भाव कणिका मानसिक कुन्हासे को उकेरती ,दुलारती ...

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  5. धडकनों के शोर में
    फिर से शब्द खामोश हो गए....

    लेकिन आपकी कविता बोल उठी...एक स्त्री के मन के भावों की सुन्दर विवेचना। बधाई एवं आभार।

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  6. aapke ahshash e dil hawa me ghul gaye...hamare dil tak pahunche hamari dhadkano se mil gaye..behad shandar..hardik badhayee

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  7. behatrin panktiyon dwaara likhi shaandaar shayaari.bahut badhaai aapko.
    शायद लटकाया था जमीं पर जानबूझ कर
    आँचल उसने

    जब तक हम उठाते वो दूर चले गए !
    आप ब्लोगर्स मीट वीकली (९) के मंच पर पर पधारें /और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/आप हमेशा अच्छी अच्छी रचनाएँ लिखतें रहें यही कामना है /
    आप ब्लोगर्स मीट वीकली के मंच पर सादर आमंत्रित हैं /

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  8. बहुत सुन्दर शायरी ..धडकनों के साथ ऐसा ही होता है ...कभी ....खामोश ...

    भ्रमर ५

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (30-06-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ...!

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