गाँव पँहुचने पर मैय्या जब पूछेगी मेरा हाल सखी
कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी
मेरी चिरैया कितना
उड़ती
पूछे जब उन आँखों से
पलक ना झपके उत्तर ढूंढें
तब तू जाना टाल सखी
कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी
पूछेगी फिर बेला चमेली
कितनी चढ़ी ऊँचाई पर
इस घर में नही कोई सीढ़ी
छोटी है दीवाल सखी
कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी
जब वो हंसती कितनी झरती
मुक्तक मणियाँ मुखड़े से
समझाना यहाँ मेरी झोली
अब है मालामाल
सखी
कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी
पूछेगी उसकी अँखियों का
कजरा अब कितना खिलता
खोल के तू अपने हाथों से
देना ये रुमाल सखी
कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी
सुनके मेरी बातें अगर
जो
मैय्या का उर भर आयें
तुझको कसम है इस बहना की
लेना तू सम्भाल सखी
कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी
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बढ़िया प्रस्तुति-
उत्तर देंहटाएंआभार दीदी-
आँखें नम कर गया यह गीत...यह सदा से होता आया है .....!!!
उत्तर देंहटाएंबहुत सुंदर रचना.
उत्तर देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (23-11-2013) "क्या लिखते रहते हो यूँ ही" “चर्चामंच : चर्चा अंक - 1438” पर होगी.
उत्तर देंहटाएंसूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
भावमय करते शब्दों का संगम .... यह गीत
उत्तर देंहटाएंअनुपम प्रस्तुति
सुन्दर भावमाय गीत धरा प्रवाह
उत्तर देंहटाएंआँखें नम हो आई ... मन को छूने वाले शब्द ....
उत्तर देंहटाएंबहुत ही सुन्दर गीत आदरणीया ..
उत्तर देंहटाएंआप की यह रचना अति सुन्दर व् भावुक है! बहुत बहुत बधाई !
उत्तर देंहटाएंआशु
कोमल भाव से ओतप्रोत अति सुन्दर रचना !
उत्तर देंहटाएं(नवम्बर 18 से नागपुर प्रवास में था , अत: ब्लॉग पर पहुँच नहीं पाया ! कोशिश करूँगा अब अधिक से अधिक ब्लॉग पर पहुंचूं और काव्य-सुधा का पान करूँ | )
नई पोस्ट तुम
कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी.
उत्तर देंहटाएंnice.
सही कहा.....पर यह सचाई है ..या व्यंगोक्ति ...इसका स्पष्ट भान नहीं होता ..
उत्तर देंहटाएंआदरणीय श्याम जी ये तो पहले बंद में ही स्पष्ट हो जाता है की क्या है ,इन पंक्तियों को ध्यान से नहीं पढ़ा आपने
हटाएंमेरी चिरैया कितना उड़ती
पूछे जब उन आँखों से
पलक ना झपके उत्तर ढूंढें
तब तू जाना टाल सखी-------तू जाना ताल सखी ----इसका अर्थ तो स्पष्ट है
बहुत सुन्दर रचना
उत्तर देंहटाएंमन को नम करती हृदयस्पर्शी रचना
उत्तर देंहटाएंबहुत सुंदर
सादर
सुन्दर रचना।। आभार।।
उत्तर देंहटाएंनई चिट्ठियाँ : ओम जय जगदीश हरे…… के रचयिता थे पंडित श्रद्धा राम फिल्लौरी
नया ब्लॉग - संगणक
http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/के शुक्रवारीय अंक२९/११/२०१३ में आपकी इस रचना को शामिल किया गया हैं कृपया अवलोकन हेतु पधारे .........धन्यवाद
उत्तर देंहटाएंbahut khubsurat rachna
उत्तर देंहटाएंनई पोस्ट तुम
पीहर पर ससुराल को महत्ता देने वाली कविता वाकई बेहद उत्कृष्ट है | (आग्रह है कविता के शब्दों का कंट्रास्ट बहुत ज्यादा है जिससे आँखों पर कुछ अधिक दबाव पड़ता है, कृपया उसमें पाठकों पर अनुग्रह करते हुए सुधार की गुंजाईश निकालें) | जय हो जय हो
उत्तर देंहटाएंसादर धन्यवाद अगली पोस्ट में आपके सुझाव का ध्यान रखूंगी
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