हादिसों से आज जिंदगियाँ गुजरती जा रही हैं
शबनमी बूंदे ज्यों ख़ारों से फिसलती जा रही हैं
लूट कर अम्नो चमन को चल पड़े हो तुम जहाँ से
बद दुआओं की वहां किरचें बिखरती जा रही हैं
अब्र तुझको क्या मिलेगा यूँ समंदर पे बरस के
देख नदियाँ आज सहरा में सिमटती जा रही हैं
हाथ दिल पर रख लिया फिर सीलती उस झोंपड़ी ने
रश्मियाँ ऊँची हवेली में उतरती जा रही हैं
बेटियां बाहर गई तो चैन क्यों आता नहीं अब
देख कर अखबार माएं क्यों सिहरती जा रही हैं
जो जमीं शादाव रहती थी यहाँ पर कहकहों से
नफ़रतों की ये रिदाएँ क्यों पसरती जा रही हैं
या ख़ुदा पर्दों के पीछे छुप गईं तहज़ीब अब तो
सूरतें जो जुल्म गर्दों की निखरती जा रही हैं
पर गुलामी कैद से जिसको शहीदों ने बचाया
उस कमल की 'राज' पंखुड़ियाँ उखड़ती जा रही हैं
**********************************
ख़ार =कांटे
शादाव=हरीभरी
किरचें =छोटे छोटे कण
रश्मियाँ =सूर्य की किरणें
रिदाएँ =चादरें
सहरा =रेगिस्तान
बहुत सुंदर ! आ. राजेश जी.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार को (09-11-2013) गंगे ! : चर्चामंच : चर्चा अंक : 1424 "मयंक का कोना" पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अब्र तुझको क्या मिलेगा यूँ समंदर पे बरस के
जवाब देंहटाएंदेख नदियाँ आज सहरा में सिमटती जा रही हैं
वाह बहुत सशक्त बिम्ब और अर्थ की धार है।
सुन्दरतम भावों को समेटे सरिता प्रवाह , प्यासी नदियाँ प्यासे सागर
जवाब देंहटाएंवाह! वाह!! वाह!!! शानदार प्रस्तुति। आभार।
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आपका-
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल. काफी अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंबेटियां बाहर गई तो चैन क्यों आता नहीं अब
जवाब देंहटाएंदेख कर अखबार माएं क्यों सिहरती जा रही हैं ..
सच की अभिव्यक्ति है ये शेर .... बहुत ही लाजवाब शेर है ...
गहन अभिव्यक्ति…
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गहन प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएं