घुप्प
अँधेरा
कुछ
नीरव क्षण
सीलते
मेघा
टप टप बरसे
खुली
किताब
विकलित
आखर
इतना
भीगे
तोड़े
तटबंधन
हो
उत्तेजित
गहन
भँवर में
मिलके डूबे
लवणित
अम्बर
पिघला
सारा
मिलकर
सागर
हो
गया खारा
कलम ने पीकर
प्यास बुझाई
हिय व्यथा सकल
कागज़ पर आई
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सुन्दर प्रयोग, सुगढ़ भाव।
जवाब देंहटाएंबहित बढ़िया प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट वो दूल्हा....
नई पोस्ट हँस-हाइगा
bahut sundar ...
जवाब देंहटाएंबाहर सुन्दर प्रस्तुति ... अच्छा प्रयोग है ...
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात! बहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएंइसी मोड़ से गुज़रा है फिर कोई नौजवाँ और कुछ नहीं
सुन्दर प्रस्तुति...
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