उतरी रेल को पटरी पर आने में वक़्त लगता है
दूर कहीं मंजिल तो वहां जाने में वक़्त लगता है
कहो क्यूँ किस लिए किस बात की आपा धापी?
रुकी जिंदगी को रफ़्तार पाने में वक़्त लगता है
दूर कहीं मंजिल तो वहां जाने में वक़्त लगता है
कहो क्यूँ किस लिए किस बात की आपा धापी?
रुकी जिंदगी को रफ़्तार पाने में वक़्त लगता है
(२ )
रक्त पिपासुओं के सम्मुख चाक़ू क्या तलवार क्या
आतंकवादी कहाँ सोचे ,सरहद क्या दीवार क्या
शांत बस्ती को जलाना ही जिनके मंसूबे हों
उन दरिंदों की खातिर परम्परा क्या परिवार क्या
(३ )
जिन्दगी
से हो गया यूँ रुख्सत गिर्दाबे अलम
मेरा सफीना जब चार हाथों से चलने लगा
पस्त हुई मौजें फ़कत लेकर इम्तहाँ रूबरू
शिकस्त खाकर समंदर भी फ़ितरत बदलने लगा
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Bahut prabhavi .. Lajawab aur arthpoorn muktak ....
जवाब देंहटाएंउतरी रेल को पटरी पर आने में वक़्त लगता है
जवाब देंहटाएंदूर कहीं मंजिल तो वहां जाने में वक़्त लगता है
कहो क्यूँ किस लिए किस बात की आपा धापी?
रुकी जिंदगी को रफ़्तार पाने में वक़्त लगता है,,,
बहुत ही उम्दा प्रभावी मुक्तक ,,,!
RECENT POST -: हमने कितना प्यार किया था.
वाह वाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (25-10-2013)
ऐसे ही रहना तुम (चर्चा मंचः अंक -1409) में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचनाये..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : उत्सवधर्मिता और हमारा समाज
बहुत सुंदर ....
जवाब देंहटाएंप्रभावी और बेहतरीन....
जवाब देंहटाएं:-)
बढ़िया और सुंदर रचना , बस उर्दू का शब्दार्थ और देते तो अच्छा होता !
जवाब देंहटाएंआभार !
बहुत सुंदर और उम्दा अभिव्यक्ति...बधाई...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और उम्दा अभिव्यक्ति...बधाई...
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