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गुरुवार, 10 अक्तूबर 2013

“गजरा” (चुहल) (लघु कथा )

"अरे गप्पू ये तो अपने ही साहब हैं चल चल जल्दी" ,जैसे ही  ट्राफिक लाईट पर गाड़ी रुकी महज दस साल का टिंकू  अपने छोटे भाई  गप्पू  के साथ दौड़ता हुआ कार की दाहिनी और आकर बोला “अरे साब आज  आप  इतनी जल्दी ? रावण जलता देखना है ,साहब ने जल्दी से उत्तर दिया| अच्छा "साहब गजरा" टिंकू के हाथ में गजरा देखती ही  बगल में बैठी मेमसाहब बोली अरे ले लो ,कितने का है ? चालीस रूपये का टिंकू ने तुरंत जबाब दिया ।

सुनते ही साहब तुनक कर बोले  "एक दिन में भाव बदल गए ? ये चालीस का हो गया कल तक बी ई ई फिर कहते- कहते अचानक रुक गए । "साहब जब एक दिन में मेमसाहब बदल जाती है तो भाव नहीं बदल सकते क्या"?  बात पूरी होने से पहले ही साहब ने  टिंकू के ऊपर चालीस रूपये फेंके और लगभग गजरा छीनते  हुए  गाडी बढ़ा दी ,तो टिंकू पीछे पीछे दौड़ने लगा।

गप्पू ने पूछा  "भाई जब उन्होंने पैसे दे दिए तो हम  क्यों पीछे भाग रहे हैं?  अभी मजे देखना गप्पू ,यदि ये मेमसाब इनकी घरवाली हुई तो गजरा अभी बाहर आएगा बात पूरी भी नहीं हुई की खटाक से गाडी से बाहर गजरा फेंक दिया गया  ,टिंकू ने दौड़ कर लपक लिया फिर प्रश्नवाचक भाव से देखते हुए गप्पू से आँख मारते हुए बोला "अभी तू छोटा है रे नहीं समझेगा ये बड़े लोगों की बातें!! चल अपुन भी रामलीला मैदान चलें!  
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12 टिप्‍पणियां:

  1. मेमसाब को सा'ब का राज पता लग गया !
    लेटेस्ट पोस्ट नव दुर्गा

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  2. बहुत बढिया..सटीक सुन्दर कथा..

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  3. क्या बात क्या गजरा था बेचारे की किस्मत अभिसारिका के बालों में न गूंथा जा सका। सशक्त कथा लघु कल्वर की विशद व्यंजना लिए।

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  4. हा..हा..हा..हा...
    कमाल है , आपको कैसे पता !!

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