ऐसी प्रलय भयंकर आई ,होश मनुज के दियो उड़ाय
काल घनों पर उड़ के आया ,घर के दीपक दियो बुझाय
पिघली धरा मोम के जैसे ,पर्वत शीशे से चटकाय
ध्वस्त हुए सब मंदिर मस्जिद ,धर्म कहाँ कोई बतलाय
बच्चे बूढ़े युवक युवतियां ,हुए जलमग्न कौन बचाय
शिव शंकर आकंठ डूबे , चमत्कार नाही दिखलाय
केदारनाथ शिवालय भीतर,ढेर लाश के दियो लगाय
मौत से लड़कर बच गए जो ,उनकी पीर कही ना जाय
नागिन सी फुफकारें नदियाँ ,निर्झर गए खूब पगलाय
पर्वत हुए खून के प्यासे, मिलकर सभी तबाही लाय
गौरी कुंड में लगी समाधि ,हरिद्वार में बहकर आय
उस पर ये जल्लादी मानव ,लूट शवों पर रहे मचाय
कुपित धरा के बाण चले जब ,उसके वार सभी बिसराय
स्वार्थी लोभी भूखे मानव ,नहीं सुने तब उसकी हाय
कुदरत ने जो मारी कंकड़ , घड़ा पाप का फूटा जाय
जैसी करनी वैसी भरनी , कुदरत सुनो रही समझाय
क्षीण हुआ जब उर क्रंदन स्वर ,पल भर को रवि बाहर आय
भेजी किरणे आमंत्रण को , सुप्त प्रशासन दियो जगाय
हंस यान पर बैठ प्रशासक,सर्वनाश पट देखन आय
खबर नहीं कुछ सोच रहे हों , कैसे वोट बटोरे जाय
उजड़ा उत्तर मान चित्र का ,फिर भी बात समझ ना पाय
सत्ता बैठी आँख मूंदकर ,राष्ट्रिय त्रासदी नहीं लिखाय
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आल्हा में दुर्लभ चित्रण है, दीदी कहों कहाँ तक जाय |
जवाब देंहटाएंनदियाँ बादल मलबा पत्थर, भवन पुलों को रहे बहाय |
शंकर नंदी मगन भंग में, रचना सारी भंग कराय |
चेताते मूरख मानव को, कुदरत को अब चले बराय ||
jee.....har baar kudrat aur kismat ko dosh...........kyu.......?
जवाब देंहटाएंwe r hindu .......y cant we manage practically..........
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (30-06-2013) के चर्चा मंच 1292 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंहंस यान पर बैठ प्रशासक,सर्वनाश पट देखन आय
जवाब देंहटाएंखबर नहीं कुछ सोच रहे हों , कैसे वोट बटोरे जाय,,, सुंदर आल्हा छंद के लिए बधाई ,,,
RECENT POST: ब्लोगिंग के दो वर्ष पूरे,
bahut hi dardnak aur pida dayak drishy hai,
जवाब देंहटाएंकुपित प्रकृति का भीषण तांडव,
जवाब देंहटाएंभाग रहे सब लोग, हताशा।
सजीव चित्रण कर दिया है इस छंदबद्ध रचना में ... आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर ,सजीव चित्रण और सराहनीय रचना
जवाब देंहटाएंसही है, बढिया प्रस्तुति
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