यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 20 जून 2013

हमें फूलों को सताना नहीं आता

ज़ख्म  काँटों से खाए हैं हमें फूलों को सताना नहीं आता 
 इश्क़े सफीने बचाए हैं हमे तूफाँ में डुबाना नहीं आता 


इसे तुम बुजदिली कह लो या समझो शाइस्तगी मेरी 
हुए अपने पराये हैं हमें सच्चाई छुपाना नहीं आता 


किसी ने दिल से निकाला किसी ने राह में फेंका 
सर पे हमने बिठाए हैं हमें ठोकर से हटाना नहीं आता 


कभी ना बेरुखी भायी कभी ना नफरतें पाली 
दिलों में घर बसाए हैं हमे महलात  बनाना नहीं आता 


शहर में धर्मों के भूसों के बड़े ढेर लगे हैं 
भले माचिस थमाए हैं हमे चिंगारी लगाना नहीं आता 


जहाँ में ईंटें भी देखी  सामने फर्ज भी देखे 
प्यार के सेतु बनाए हैं हमे दीवारें बनाना नहीं आता 


मेरी नस नस में बसी देश की माटी की है खुशबु 
चाहे परदेस में जाएँ हमे स्वदेश भुलाना नहीं आता 


क्या होती है आजादी ये पंखों पे लिखा है 
मुक्त पंछी उडाये हैं हमे पिंजरों में सजाना नहीं आता 


"राज" ने जीत भी देखी  औ कभी हार भी देखी 
लम्हे दिल में छुपाये हैं हमे दुनिया को जताना नहीं आता 


ज़ख्म  काँटों से खाए हैं हमें फूलों को सताना नहीं आता 
हमें फूलों को सताना नहीं आता
हमें फूलों को सताना नहीं आता
************************************************
ओबीओ कविसम्मेलन/मुशायरा हल्द्वानी में अपनी नज़्म पढ़ते हुए 15/6/13 

15 टिप्‍पणियां:

  1. जहाँ में ईंटें भी देखी सामने फर्ज भी देखे
    प्यार के सेतु बनाए हैं हमे दीवारें बनाना नहीं आता

    ....बहुत खूब! बहुत प्रभावी प्रस्तुति...

    जवाब देंहटाएं
  2. man gaye rajesh ji ki aapko vastav me foolon ko satana nahi aata. . बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति .आभार . ये है मर्द की हकीकत आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN

    जवाब देंहटाएं
  3. शहर में धर्मों के भूसों के बड़े ढेर लगे हैं
    भले माचिस थमाए हैं हमे चिंगारी लगाना नहीं आता

    बहुत सुन्दर रचना ....बहुत प्रभावशाली भाव ...
    बधाई राजेश जी ....

    जवाब देंहटाएं
  4. काश इस तरह के कई कर्म हम कभी न सीख पायें।

    जवाब देंहटाएं
  5. कभी ना बेरुखी भायी कभी ना नफरतें पाली
    दिलों में घर बसाए हैं हमे महलात बनाना नहीं आता

    kamaal!!

    जवाब देंहटाएं
  6. किसी ने दिल से निकाला किसी ने राह में फेंका
    सर पे हमने बिठाए हैं हमें ठोकर से हटाना नहीं आता ..

    बहुत खूब ... इन्सान उसी को कहते हैं ... उन्दा प्रस्तुति है ...

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर गजल , आपका ब्लॉग ज्वाइन कर रहा हूँ , कभी यहाँ भी आये
    http://shoryamalik.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  8. शौर्य मालिक जी आपका मेरे ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत है

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  10. भले माचिस थमाए हैं हमे चिंगारी लगाना नहीं आता

    बहुत सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं