बहु भाषी हैं पात ,अर्चित दरख़्त घनेरा।
शत धर्मो की शाख ,अद्दभुत देश है मेरा॥
हिम कंगूरे चूम ,सूरज लाये सवेरा।
भर देता नव रंग ,प्रकर्ति में ये चितेरा।
हरित गाछ को काट ,जड़ कंक्रीट उगाते|
उच्च भवन निर्माण ,कर मन ही मन अघाते||
शैल बदन को नोच,उससे आँगन बनाते|
धरा गर्भ में शोध ,करके तबाही लाते|
पर्यावरण की मार ,झेले वतन ये मेरा
किया धरा पर वार ,जहाँ प्रदूषण बिखेरा
बहु भाषी हैं पात ,अर्चित दरख़्त घनेरा।
शत धर्मो की शाख ,अद्दभुत देश है मेरा॥
पर्यावरण के साथ हम भी प्रसन्न हैं, सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंशत धर्मो की शाख,अद्दभुत देश है मेरा॥
जवाब देंहटाएंशानदार,बहुत उम्दा प्रस्तुति,,,
RECENT POST: हमने गजल पढी, (150 वीं पोस्ट )
वाह बहुत ही सुंदर एवं सार्थक रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बात कही है आपने .आभार . मुलायम मन की पीड़ा साथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बृहस्पतिवार (06-06-2013) को साहित्य में प्रदूषण ( चर्चा - 1267 ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
पर्यावरण पर बहुत सुन्दर प्रेरक रचना ..
जवाब देंहटाएंबड़े अच्छे और सार्थक संकेत दे कर पर्यावरण का महत्व बताया है.
जवाब देंहटाएंसचमुच चिंता का विषय है नष्ट होता पर्यावरण
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
बहुत ही सही चित्रण किया आपने। इतनी सुन्दर और सटीक रचना के लिए हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंये प्राकृति हमारी है और हमने ही इसका ख्याल् रखना है ...
जवाब देंहटाएंसटीक अभिव्यक्ति ...