थर्रा गये मंदिर ,मस्जिद ,गिरिजा घर
जब कर्ण में पड़ी मासूम की चीत्कार
सहम गए दरख़्त के सब फूल पत्ते
बिलख पड़ी हर वर्ण हर वर्ग की दीवार
रिक्त हो गए बहते हुए चक्षु समंदर
दिलों में नफरतों के नाग रहे फुफकार
उतर आये दैत्य देवों की भूमि पर
और ध्वस्त किये अपने देश के संस्कार
दर्द के अलाव में जल रहे हैं जिस्म
नाच रही हैवानियत मचा हाहाकार
देख खतरे में नारियों का अस्तित्वसर्व नाश भू मंडल पर ले रहा आकार
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बहुत सटीक प्रस्तुति.वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
जवाब देंहटाएंवर्तमान परिस्थिति का मार्मिक चित्रण पेश किया है आपने हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएंमार्मिक चित्रण
जवाब देंहटाएंशानदार लेखन,
जवाब देंहटाएंजारी रहिये,
बधाई !!!
सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील रचना,.....
जवाब देंहटाएंआत्मा को झकझोरती सम्बेदनशील रचना -खुबसूरत
जवाब देंहटाएंइसमें भी पधारें http://vicharanubhuti.blogspot.in
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सार्थक संवेदनशील प्रस्तुति,,,,
जवाब देंहटाएंrecent post : नववर्ष की बधाई
प्रभावी .... सामयिक रचना ... ये गुस्सा जायज है ...
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंये स्थितियाँ प्रलय के प्रथम संकेत हैं।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंनववर्ष की हार्दिक बधाई।।।
दिन तीन सौ पैसठ साल के,
जवाब देंहटाएंयों ऐसे निकल गए,
मुट्ठी में बंद कुछ रेत-कण,
ज्यों कहीं फिसल गए।
कुछ आनंद, उमंग,उल्लास तो
कुछ आकुल,विकल गए।
दिन तीन सौ पैसठ साल के,
यों ऐसे निकल गए।।
शुभकामनाये और मंगलमय नववर्ष की दुआ !
इस उम्मीद और आशा के साथ कि
ऐसा होवे नए साल में,
मिले न काला कहीं दाल में,
जंगलराज ख़त्म हो जाए,
गद्हे न घूमें शेर खाल में।
दीप प्रज्वलित हो बुद्धि-ज्ञान का,
प्राबल्य विनाश हो अभिमान का,
बैठा न हो उलूक डाल-ड़ाल में,
ऐसा होवे नए साल में।
Wishing you all a very Happy & Prosperous New Year.
May the year ahead be filled Good Health, Happiness and Peace !!!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (06-01-2013) के चर्चा मंच-1116 (जनवरी की ठण्ड) पर भी होगी!
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कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि चर्चा में स्थान पाने वाले ब्लॉगर्स को मैं सूचना क्यों भेजता हूँ कि उनकी प्रविष्टि की चर्चा चर्चा मंच पर है। लेकिन तभी अन्तर्मन से आवाज आती है कि मैं जो कुछ कर रहा हूँ वह सही कर रहा हूँ। क्योंकि इसका एक कारण तो यह है कि इससे लिंक सत्यापित हो जाते हैं और दूसरा कारण यह है कि किसी पत्रिका या साइट पर यदि किसी का लिंक लिया जाता है उसको सूचित करना व्यवस्थापक का कर्तव्य होता है।
सादर...!
नववर्ष की मंगलकामनाओं के साथ-
सूचनार्थ!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Bahut sunder prastuti. Sachmuch daityon ka mukt sanchar ho raha hai yahan.
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