लिखी गई फिर पल्लव पर नाखून से कहानियां
खिलखिलाई गुलशन में न्रशंसता की निशानियां
छिपे शिकारी जाल बिछाकर ,चाल समझ में आई
उड़ती चिड़िया ने नभ से न आने की कसम खाई
बिछी नागफनी देख बदरिया मन ही मन घबराई
गर्भ से निकली ज्यों ही बूँदे झट उर से चिपकाई
सकुचाई ,फड़ फडाई तितली देख देख ये सोचे
कहाँ छिपाऊं पंख मैं अपने कौन कहाँ कब नोचे
देख सामाजिक ढांचा आज हर मादा शर्मिंदा है
एक सवाल अपने अस्तित्व से ,री तू क्यूँ जिन्दा है ??
मार्मिक रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक अभिव्यक्ति ...........
जवाब देंहटाएंबेहतरीन,मार्मिक अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: वजूद,
कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .......
जवाब देंहटाएंवाह आपने तो तितली के रूप में कई भावो को व्यक्त कर दिया
जवाब देंहटाएंमार्मिक स्थिति..
जवाब देंहटाएंबढ़िया, साधुवाद !!
जवाब देंहटाएंअत्यंत मंर्मिक रचना...लेकिन अब मादाओं को डरने की नहीं बल्कि डराने की जरूरत है तभी कुछ हो सकता है...
जवाब देंहटाएंदेख सामाजिक ढांचा आज हर मादा शर्मिंदा है
जवाब देंहटाएंएक सवाल अपने अस्तित्व से ,री तू क्यूँ जिन्दा है ??
सच्चा आक्रोश
दर्द ही दर्द
जवाब देंहटाएंबहुत मर्मस्पर्शी रचना...
जवाब देंहटाएंsamyikta ke dil ko chhoo jane wali rachana ko mera salam .
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