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गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

री तू क्यूँ जिन्दा है ??


लिखी  गई  फिर पल्लव पर नाखून से कहानियां   
खिलखिलाई गुलशन में न्रशंसता की निशानियां  
छिपे शिकारी जाल बिछाकर ,चाल समझ में आई 
उड़ती चिड़िया ने नभ से   आने की  कसम खाई 
बिछी नागफनी देख बदरिया मन ही मन घबराई 
गर्भ से निकली ज्यों ही बूँदे झट उर से चिपकाई 
 सकुचाई ,फड़ फडाई तितली देख देख ये सोचे 
 कहाँ छिपाऊं पंख मैं अपने कौन कहाँ कब नोचे 
देख सामाजिक ढांचा आज हर  मादा शर्मिंदा है 
एक सवाल अपने अस्तित्व से ,री तू क्यूँ जिन्दा है ??
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12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति ...........

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  2. बेहतरीन,मार्मिक अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,,,,

    recent post: वजूद,

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  3. कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .......

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  4. वाह आपने तो तितली के रूप में कई भावो को व्यक्त कर दिया

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  5. अत्यंत मंर्मिक रचना...लेकिन अब मादाओं को डरने की नहीं बल्कि डराने की जरूरत है तभी कुछ हो सकता है...

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  6. देख सामाजिक ढांचा आज हर मादा शर्मिंदा है
    एक सवाल अपने अस्तित्व से ,री तू क्यूँ जिन्दा है ??

    सच्चा आक्रोश

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