फर्ज के अलाव में कब तक जलो
परछाई भी कहने लगी इधर चलो
चन्दन से लिपट खुद को समझ बैठे चन्दन
भ्रम जाल में खुद को कब तक छलो|
हम तो पानी पे तैरती लकड़ी हैं जनाब
सागर भी कहता है अब यूँ ही गलो|
हंस- हंस के गले मिलते हैं जड़े काटने वाले
फिर चलते हुए कहते हैं फूलों फलो |
ख़त्म हो चुका है कब से तेल बाती का
पर उनका यही कहना है रात भर बलो|
फर्ज के अलाव में कब तक जलो
परछाई भी कहने लगी इधर चलो|
बहुत बढ़िया राजेश जी...
जवाब देंहटाएंहंस- हंस के गले मिलते हैं जड़े काटने वाले
फिर चलते हुए कहते हैं फूलों फलो |
बहुत ही अच्छी लगी रचना..
सादर.
फर्ज़ और परछाई ....सुंदर ताल-मेल !
जवाब देंहटाएंबधाई!
हंस- हंस के गले मिलते हैं जड़े काटने वाले
जवाब देंहटाएंफिर चलते हुए कहते हैं फूलों फलो |
मनुष्य की असली सच्चाई बयां कर दी .
सुन्दर रचना .
बहुत गहन अभिव्यक्ति ... जड़ काट कर फूलो फलो की कामना ... अच्छी लगी यह रचना
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावशली रचना !
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ …………सच कहकर निशब्द कर दिया ……………दिल मे उतर गयी।
जवाब देंहटाएंहर पंक्ति एक व्याख्या सी करती है ज़िन्दगी की…………बेहद उम्दा शानदार
जवाब देंहटाएंआपकी रचना बहुत कुछ सिखा जाती है...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर गहन
जवाब देंहटाएंभाव अभिव्यक्ति :-)
बहुत ही बढ़िया .....
चन्दन से लिपट खुद को समझ बैठे चन्दन
जवाब देंहटाएंभ्रम जाल में खुद को कब तक छलो|
bahut hi sunder likha hai ...!!
badhai evam shubhkamnayen ...
राह कभी अपनी भी आवाज़ देती है..
जवाब देंहटाएंचन्दन से लिपट खुद को समझ बैठे चन्दन ... bhram me kab tak jiyen
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा प्रस्तुति!
बहुत अच्छी प्रस्तुति,इस निशब्द करती रचना के लिए बधाई,...
जवाब देंहटाएंMY NEW POST ...काव्यान्जलि ...होली में...
वाह !
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ुब कहा आपने…
चन्दन से लिपट खुद को समझ बैठे चन्दन
भ्रम जाल में खुद को कब तक छलो
सच भी है, हम बहुत सारे भ्रम पाल बैठते हैं …
और ऐसे दोहरे चरित्र के लोगों से भी पाला पड़ता ही रहता है…
हंस- हंस के गले मिलते हैं जड़े काटने वाले
फिर चलते हुए कहते हैं फूलो फलो
बधाई अच्छी रचना के लिए
मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत उम्दा है बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा है,बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंu seem to be a source of inspiration... thak you for your beautiful expressions....
जवाब देंहटाएं