यह कविता उन माता पिता के नाम जिन्होंने सर्व प्रथम बालिका शिक्षण की शुरुआत की !
सकुचाया सा डरा डरा
अनचाहा सा मरा मरा
कम्पित काया, भीरु मन
जाने कब हो जाए हनन
सघन तरु की छाया में
इक नन्हा पौधा खड़ा हुआI
कितने ही बवंडर आये
उसके वजूद तक पंहुच ना पाये
तरु का आलंबन कड़ा हुआ
जड़ों से पीकर उसका क्षीर
धीरे धीरे बड़ा हुआ
इक नन्हा पौधा खड़ा हुआI
बीते कितने पतझड़ ,बसंत
हुआ कद उसका और बुलंद
खुशबु उसकी यूँ महकाए
पंवरी ,चन्दन भी शर्माएI
अरि आलोचक मूक बनाये
अपने दम पर अड़ा हुआ
इक नन्हा पौधा खड़ा हुआ I
फिर काल चक्र सम्पूर्ण हुआ
सघन तरु तन जीर्ण हुआ
फट गई काया मिट गया तन
पर मन में ना कोई चुभनI
कहाँ भीरुता ,दुर्बल तन
अब बन गया वो तरु सघन
मेरी धरोहर मेरा वंश
उसके ही दम से चला हुआ
वो देखो शिखर सम खड़ा हुआI
मेरा नन्हा पौधा,
मुझसे भी कद में बड़ा हुआ
मुझसे भी कद में बड़ा हुआ II
*****
बहुत बढ़िया रचना!
जवाब देंहटाएंकाश हम भी पादप हो जाते।
सब कुछ सहते फिर भी फल देते।
bahut hi saargarbhit rachna, kaavya kee ek uchchtam dhara
जवाब देंहटाएंकमाल की प्रेरक प्रस्तुति है आपकी.
जवाब देंहटाएंपढकर मन प्रसन्न हो गया है.
आभार.
मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा जी.
प्रेरक प्रस्तुति...बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंजीवन चक्र को सार्थकता देती हुई रचना ।
बहुत सार्थक अभिव्यक्ति सुंदर रचना,बेहतरीन पोस्ट....
जवाब देंहटाएंnew post...वाह रे मंहगाई...
इसी तरह पौधा खुद से बड़ा हो जाता है , काला टीका लगाते हैं - नज़र ना लगे
जवाब देंहटाएंप्रेरक ..
जवाब देंहटाएंkalamdaan.blogspot.com
haalaat se lad kar jo nikhartaa hai
जवाब देंहटाएंuskaa kad nischay hee badaa hotaa
sundar khyaal
बहूत सुंदर प्रेरक अभिव्यक्ती है ..
जवाब देंहटाएंमेरा नन्हा पौधा,
जवाब देंहटाएंमुझसे भी कद में बड़ा हुआ
प्रेरक,सुंदर अभिव्यक्ति
बहुत खूबसूरत रचना .. नन्हा पौधा यूँ ही डटा रहे ...
जवाब देंहटाएंजिस पौधे को छाँव बनना हो, उसे हर प्रकार का पोषण मिले..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
जवाब देंहटाएंप्रेरक रचना ... पौधों को बढते देखना कितना सुखद लगता है ... उत्तम भाव ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया।
जवाब देंहटाएंसादर
एक माँ के लिये सुखद अहसास कराती सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंनिश्चित ही सराहनाय.....
कृपया इसे भी पढ़े-
क्या यही गणतंत्र है
ख़ूबसूरत, सार्थक एवं प्रेरक प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंकहाँ भीरुता ,दुर्बल तन
जवाब देंहटाएंअब बन गया वो तरु सघन
मेरी धरोहर मेरा वंश
उसके ही दम से चला हुआ
वो देखो शिखर सम खड़ा हुआI
मेरा नन्हा पौधा,
मुझसे भी कद में बड़ा हुआ
मुझसे भी कद में बड़ा हुआ II
***** BAHUT HI SUNDAR PRASTUTI ......HR AK ICHHA HOTI HAI APNE PAUDHE KA KAD BADA DEKHNE KI ....LEKIN BHAGYSHALI LOG HI DEKH PATE HAIN ....APKI BAHWANON AUR LEKHNI KO BADHAI....HAN MERE POST PR APKA AMNTRAN HAI.
बहुत सुंदर प्रस्तुति,भावपूर्ण अच्छी पंक्तियाँ, रचना अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंWELCOME TO NEW POST --26 जनवरी आया है....
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए.....
very nice.
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंvikram7: कैसा,यह गणतंत्र हमारा.........
कविता अच्छी बन पड़ी है। हर मौलिक प्रयास को उसका मान दिया ही जाना चाहिए।
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचना है.
जवाब देंहटाएंबधाई.
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंBahur sundar rachna ..
जवाब देंहटाएंprotsaahit karte bhaav.. bahut achha laga padhke.. :)
kabhi waqt mile to mere blog par bhi aaiyega.. apka swaagat hai..
palchhin-aditya.blogspot.com