(१ )
सुनकर संतों की वाणी
मैं प्रभु की अभिलाषी हो गई
पीकर कटु दुखों का गरल
मैं कितनी मृदुभाषी हो गई !!
(२ )
देख पराई पीर मैं अपनी
नाव का चप्पू छोड़ गई
नजर थी जिसकी तुझपर
उस तूफाँ का रुख मोड़ गई!!
(३)
मैं ,मेरा ,अहम् सब छोड़ा
एक प्रभु से नाता जोड़ा
अहम् सदा विवेक को हरता
परहित धरम संतुष्टि करता !!
(४)
परहित सम धरम नहीं कोई
तुम भी समझ जाओगे
पौंछ के देखो अश्रु किसी के
प्रभु को निकट पाओगे !!
(५ )
एक दिन खोजूंगी उसको
यह प्रभु की इच्छा पूर्ण हुई
पाकर अपने ही दिल में
जीवन गाथा सम्पूर्ण हुई !!
Awesome creation , but the opening couplets are just superb !..Hats off Rajesh ji !
जवाब देंहटाएंVandematram !
दुसरे पर उपकार करने से बड़ा कोई धरम नही,...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर रचना......
welcome to new post--जिन्दगीं--
वाह...अद्भुत रचना है आपकी...बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंनीरज
सुन्दर ,सार्थक और अनुकरणीय सन्देश ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर और अनुकरणीय सन्देश
जवाब देंहटाएंसुनकर संतों की वाणी
जवाब देंहटाएंमैं प्रभु की अभिलाषी हो गई
पीकर कटु दुखों का गरल
मैं कितनी मृदुभाषी हो गई !!
aap mridu bhaashee banee rahein
hai duaa hamaaree
बहुत सुन्दर और अनुकरणीय सन्देश|
जवाब देंहटाएंपीकर कटु दुखों का गरल
जवाब देंहटाएंमैं कितनी मृदुभाषी हो गई !!
बहुत सुन्दर रचना ।
बहूत सुंदर और सार्थक संदेश देती उत्तम रचना है...
जवाब देंहटाएंअत्यन्त सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सत्य प्रभु तो दिल में ही रहता है ...बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकिसी की मुस्कराहटों पे हो निसार...जीना इसी का नाम है...
जवाब देंहटाएंदूसरों के लिए जीना ही वास्तव में जीना है।
जवाब देंहटाएंप्रेरक रचना।
परहित सम धरम नहीं कोई
जवाब देंहटाएंतुम भी समझ जाओगे
पौंछ के देखो अश्रु किसी के
प्रभु को निकट पाओगे ...
सच है दूसरे के आँखों के आंसू पौंछने पर परम सुख मिलता है ...
सुन्दर भाव पूर्ण रचना ...
बढ़िया प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 09-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
बढ़िया प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 09-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
सभी शब्दचित्र बहुत बढ़िया हैं!
जवाब देंहटाएंमैं तुझे मिल जाऊंगा, तू बस मैं को भूल
जवाब देंहटाएंमेरी खातिर हैं बहुत , श्रद्धा के दो फूल.
जिस दिन स्वयम् से परिचय होने की शुरुवात होती है उस दिन से ही उसकी सत्ता में मानव का प्रवेश होता है, बहुत बहुत स्तरीय रचना.
बेहद ख़ूबसूरत एवं उम्दा रचना ! बधाई !
जवाब देंहटाएंपोस्ट का संदेश प्रेरक है।
जवाब देंहटाएंनैतिक शिक्षा पर आधारित सुन्दर रचना निश्चित ही
जवाब देंहटाएंअनुकरणीय हैं।