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सोमवार, 8 जुलाई 2013

कुछ व्यंगात्मक उलटबाँसियाँ (दोहे )

सच्चाई पर चढ़ गई ,झूठी कपटी भीड़
|
झीलें कौवों से अटी ,सत हंसों से नीड़||

सागर नदियों में मिले,घन बरसायें आग |

टर्र टर्र  मानव  करे ,मेढ़क  खेलें फाग||

जला रहे पटबीजने ,भव्य ऊँचे  मकान|

खोद रही अब चींटियाँ ,कोयले की खदान||

अब छिपकलियों से सजे ,लाल-लाल कालीन|

राज यहाँ गिरगिट करें ,लगे बहुत शालीन||


मधुशाला में बैठ के ,मद्य पी रही मीन|

नागिन की फुफकार पे ,नाच रही है बीन ||

दादी चढ़ी पहाड़ पर ,लेकर कुन्टल भार|

खड़ा युवक ये सोचता ,मुश्किल चढ़ना यार||

जहां तहां करके  खनन ,भू पट दिए उघाड़ |

अब अंतर में खींचती , रो ले  मार दहाड़||

कब तक मानव स्वार्थ का ,सहती रहती  वार| 

झेल सके तो झेल अब ,प्राकर्तिक  तलवार ||

हे दम्भी मानव तुझे ,कब होगा आभास |

नहीं कभी तेरी प्रकृति ,तू है उसका दास||  

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15 टिप्‍पणियां:

  1. हे दम्भी मानव तुझे ,कब होगा आभास |
    नहीं कभी तेरी प्रकृति,तू है उसका दास||

    बहुत उम्दा सटीक दोहे प्रस्तुति,,,

    RECENT POST: गुजारिश,

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  2. वाह , बहुत सुंदर, किया खूब कहा है एक एक पंक्ति को,शुभकामनाये

    यहाँ भी पधारे ,
    रिश्तों का खोखलापन
    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_8.html

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .सच्चाई को शब्दों में बखूबी उतारा है आपने आभार इमदाद-ए-आशनाई कहते हैं मर्द सारे आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -5.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN हर दौर पर उम्र में कैसर हैं मर्द सारे ,

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  4. मस्त है उलट-बासियाँ -
    आभार दीदी-

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  5. कबीर की उलटबाँसियाँ याद दिला दीं आपने !

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  6. सुंदर लिखती हैं बहुत, दिल छू लेते व्यंग |
    हास्य-व्यंग्य की भावना, मिल बांटे सब संग |

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  7. दी आपने तो कुछ उल्टी गंगा बहाय
    कलयुग है अब कौन किसे समझाये

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  8. ulti ulti mat kaho ulti rahi dikhay,antar netra niharate raha yahi dikhalay. (sahi dohe)

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  9. सटीक व्यंगात्मक दोहे आपकी कलम से ... बहुत खूब

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