सच्चाई पर चढ़ गई ,झूठी कपटी भीड़
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झीलें कौवों से अटी ,सत हंसों से नीड़||
सागर नदियों में मिले,घन बरसायें आग |
टर्र टर्र मानव करे ,मेढ़क खेलें फाग||
जला रहे पटबीजने ,भव्य ऊँचे मकान|
खोद रही अब चींटियाँ ,कोयले की खदान||
अब छिपकलियों से सजे ,लाल-लाल कालीन|
राज यहाँ गिरगिट करें ,लगे बहुत शालीन||
मधुशाला में बैठ के ,मद्य पी रही मीन|
नागिन की फुफकार पे ,नाच रही है बीन ||
दादी चढ़ी पहाड़ पर ,लेकर कुन्टल भार|
खड़ा युवक ये सोचता ,मुश्किल चढ़ना यार||
जहां तहां करके खनन ,भू पट दिए उघाड़ |
अब अंतर में खींचती , रो ले मार दहाड़||
कब तक मानव स्वार्थ का ,सहती रहती वार|
झेल सके तो झेल अब ,प्राकर्तिक तलवार ||
हे दम्भी मानव तुझे ,कब होगा आभास |
नहीं कभी तेरी प्रकृति ,तू है उसका दास||
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hakikat ko bkhubi vayan karti behatareen prastuti
जवाब देंहटाएंहे दम्भी मानव तुझे ,कब होगा आभास |
जवाब देंहटाएंनहीं कभी तेरी प्रकृति,तू है उसका दास||
बहुत उम्दा सटीक दोहे प्रस्तुति,,,
RECENT POST: गुजारिश,
वाह , बहुत सुंदर, किया खूब कहा है एक एक पंक्ति को,शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारे ,
रिश्तों का खोखलापन
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_8.html
बहुत सुंदर और सटीक दोहे
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .सच्चाई को शब्दों में बखूबी उतारा है आपने आभार इमदाद-ए-आशनाई कहते हैं मर्द सारे आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -5.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN हर दौर पर उम्र में कैसर हैं मर्द सारे ,
जवाब देंहटाएंमस्त है उलट-बासियाँ -
जवाब देंहटाएंआभार दीदी-
बेहतरीन तंज़
जवाब देंहटाएंपधारिये और बताईये निशब्द
कबीर की उलटबाँसियाँ याद दिला दीं आपने !
जवाब देंहटाएंसुंदर लिखती हैं बहुत, दिल छू लेते व्यंग |
जवाब देंहटाएंहास्य-व्यंग्य की भावना, मिल बांटे सब संग |
दी आपने तो कुछ उल्टी गंगा बहाय
जवाब देंहटाएंकलयुग है अब कौन किसे समझाये
ulti ulti mat kaho ulti rahi dikhay,antar netra niharate raha yahi dikhalay. (sahi dohe)
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंखुबसूरत अभिवयक्ति....
जवाब देंहटाएंसीख से भरे दोहे।
जवाब देंहटाएंसटीक व्यंगात्मक दोहे आपकी कलम से ... बहुत खूब
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