वक़्त किसका गुलाम होता है
कब कहाँ किसके नाम होता है
कल तलक जिससे था गिला तुमको
आज किस्सा तमाम होता है
पास है जो मुआमला अपना
घर से निकला तो आम होता है
आज जग में सिया नहीं मिलती
बस किताबों में राम होता है
चिलमनो में मुहब्बतें कल थी
अब तमाशा ये आम होता है
अश्क कल दर्द के जो पीते थे
हाथ में आज जाम होता है
रास्ते तो करीब आ जाएं
दूर कितना मुकाम होता है
रंजिशे तुम जहां कहीं पालो
मौन उस पर विराम होता है
‘राज’ ख्वाबों में ही नहीं मिलती
रूबरू अब सलाम होता है
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कल तलक जिससे था गिला तुमको
जवाब देंहटाएंआज किस्सा तमाम होता है , बहुत अच्छी रचना आभार
आपने लिखा....
जवाब देंहटाएंहमने पढ़ा....
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए बुधवार 17/07/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in ....पर लिंक की जाएगी.
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है .
धन्यवाद!
सराहनीय प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंआजकल की ज़माने की सही और सुंदर अभिव्यक्ति ..!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसूरत और प्यारी रचना..... भावो का सुन्दर समायोजन......
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत खूब..
जवाब देंहटाएंbahut badiya.....
जवाब देंहटाएंक्या बात है, बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
सभी दोस्तों का तहे दिल से शुक्रिया |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंlatest post सुख -दुःख
रंजिशे तुम जहां कहीं पालो
जवाब देंहटाएंमौन उस पर विराम होता है --------
समकालीन यथार्थ बोध की
बहुत सुंदर गजल
सादर
रंजिशे तुम जहां कहीं पालो
जवाब देंहटाएंमौन उस पर विराम होता है
बहुत अच्छा लगा...
सुंदर प्रस्तुति,वक्त किसका गुलाम होगा जो सब को अपना गुलाम बनाता हो ?जिसने सब को गुलाम बना रखा हो?
जवाब देंहटाएंkya bat ....bahut badhiya.....ershad
जवाब देंहटाएंनिसंदेह साधुवाद योग्य रचना....
जवाब देंहटाएंनिसंदेह साधुवाद योग्य रचना....
जवाब देंहटाएंबुत ही खूबसूरत गज़ल है ... कमाल के शेर ...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंमेरी नयी पोस्ट के लिये पधारे...
मन का मंथन...