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रविवार, 14 जुलाई 2013

वक़्त किसका गुलाम होता है

वक़्त किसका गुलाम होता है 
कब कहाँ किसके नाम होता है 

कल तलक जिससे था गिला तुमको 
आज किस्सा तमाम होता है 

पास है  जो  मुआमला अपना 
घर से निकला तो आम होता है 

आज जग में सिया नहीं मिलती 
बस किताबों में राम होता है 

चिलमनो में मुहब्बतें कल थी 
अब तमाशा ये आम होता है 

अश्क कल दर्द के जो पीते थे 
हाथ में आज जाम होता है  

रास्ते तो करीब  जाएं  
दूर कितना  मुकाम होता है  

रंजिशे तुम जहां कहीं पालो    
 मौन  उस पर  विराम  होता है 

‘राज’ ख्वाबों  में ही नहीं मिलती 
रूबरू अब सलाम होता है 
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18 टिप्‍पणियां:

  1. कल तलक जिससे था गिला तुमको
    आज किस्सा तमाम होता है , बहुत अच्छी रचना आभार

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  2. आपने लिखा....
    हमने पढ़ा....
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए बुधवार 17/07/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in ....पर लिंक की जाएगी.
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    लिंक में आपका स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. आजकल की ज़माने की सही और सुंदर अभिव्यक्ति ..!!

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही खुबसूरत और प्यारी रचना..... भावो का सुन्दर समायोजन......

    जवाब देंहटाएं
  5. क्या बात है, बहुत सुंदर रचना
    बहुत सुंदर

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  6. सभी दोस्तों का तहे दिल से शुक्रिया |

    जवाब देंहटाएं
  7. रंजिशे तुम जहां कहीं पालो
    मौन उस पर विराम होता है --------

    समकालीन यथार्थ बोध की
    बहुत सुंदर गजल
    सादर

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  8. रंजिशे तुम जहां कहीं पालो
    मौन उस पर विराम होता है

    बहुत अच्छा लगा...

    जवाब देंहटाएं
  9. सुंदर प्रस्तुति,वक्त किसका गुलाम होगा जो सब को अपना गुलाम बनाता हो ?जिसने सब को गुलाम बना रखा हो?

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  10. बुत ही खूबसूरत गज़ल है ... कमाल के शेर ...

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  11. भावपूर्ण रचना...

    मेरी नयी पोस्ट के लिये पधारे...
    मन का मंथन...

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