विजय दशमी (तीन दोहे दो रोले )
इक रावण को फूंक के ,मानव तू इतराय
नष्ट करेगा कब जिसे ,उर में रहा छुपाय
सच्चाई की जीत हो ,झूठ का हो विनाश
कष्ट ये तिमिर का मिटे ,मन में होय प्रकाश
सत स्वरूपी राम है ,दर्प रूप लंकेश
दशहरा पर्व से मिले ,यही बड़ा सन्देश
(दो रोले )
दैत्यों का हो अंत ,मिटे जग का अँधेरा
संकट जो हट जाय,वहीँ बस होय सवेरा
अपना ही मिटवाय ,छुपाकर अन्दर धोखा
लंका को ज्यों ढाय,बता कर भेद अनोखा
इंसा को दे मार ,अहम् का सर्प विषैला
मत कर ना विश्वास,बड़ा यह दंश कसैला
सद्जन उन्नत काम ,यहाँ अक्सर कर जाते
सच का लेकर साथ ,महा सागर तर जाते
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आदरणीया सुन्दर दोहे और रोले गढ़े हैं, विजयादशमी की हार्दिक शुभकानाएं . आपको यहाँ शामिल किया गया है कृप्या पधारें . http://bloggers-word.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक प्रस्तुति... विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना..आप सबको भी विजयादशमी की शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर व् सार्थक अभिव्यक्ति .आपको विजयदशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति !
बहुत खूब ...
.
जवाब देंहटाएंஜ▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
♥~*~विजयदशमी की हार्दिक बधाई~*~♥
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सार्थक सन्देश सब तक पहुंचे -- दशहरे की शुभकामनायें .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ
♥(¯*•๑۩۞۩~*~विजयदशमी (दशहरा) की हार्दिक शुभकामनाएँ!~*~۩۞۩๑•*¯)♥
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बहुत सुन्दर एवं सार्थक रचना...
जवाब देंहटाएंविजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
सादर
अनु
सुन्दर दोहे और सुन्दर रोले... सार्थक
जवाब देंहटाएंविजयादशमी की आपको बहुत बहुत शुभकामनायें।
बहुत ही अच्छा लिखा है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसार्थकता लिये सशक्त प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर
सुंदर दोहे हैं......रंजना जी एक गुस्ताखी कर रहा हूं ....मेरे ख्याल से दोहे में कुछ मात्राओं की संख्या निश्चित होती है...हर लाइन में शायद वो यहां पर पूरी तरह से नहीं है इसलिए शायद ये दोहे नहीं बन पड़े हैं..अगर गलती हो तो बच्चा जानकर माफ कीजिएगा.....
जवाब देंहटाएंरोहीताश जी दोहे १३ ,११ होते हैं रोले ११ ,१३ आप इंगित कीजिये कौन से पंक्ति में मात्रा गड़बड़ है
हटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सामयिक संदेश दे रही यह रचना 1
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन है आपकी रचनाएँ...
जवाब देंहटाएंमनभावन..
:-)
इंसा को दे मार ,अहम् का सर्प विषैला
जवाब देंहटाएंमत कर ना विश्वास,बड़ा यह दंश कसैला
आदरणीया राजेश कुमारी जी ...बहुत सुन्दर रचना ...सुन्दर और कारगर सन्देश ..... जय श्री राधे
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
विजय दशमी (तीन दोहे दो रोले )
जवाब देंहटाएंइक रावण को फूंक के ,मानव तू इतराय
नष्ट करेगा कब जिसे ,उर में रहा छुपाय
सच्चाई की जीत हो ,झूठ का सत्यानाश
मिटे तिमिर का कष्ट भी ,मन में होय प्रकाश
सत्य स्वरूपी राम हैं ,दर्प रूप लंकेश
पर्व दशहरा से मिले ,यही बड़ा सन्देश
(दो रोले )
दैत्यों का हो अंत ,मिटे जग का अँधेरा
संकट जो हट जाय,वहीँ बस होय सवेरा
अपना ही मिटवाय ,छुपाकर अन्दर धोखा
लंका को ज्यों ढाय,बता कर भेद अनोखा
इंसा को दे मार ,अहम् का सर्प विषैला
मत कर ना विश्वास,बड़ा यह दंश कसैला
सद्जन उन्नत काम ,यहाँ अक्सर कर जाते
सच का लेकर साथ ,महा सागर तर जाते
बहुत बढ़िया रचे ,रुचे दोहे -रोले आपके .बधाई .देखिये एक दो शब्दों को आगे पीछे करके देखा है .अच्छा लगे तो ठीक नहीं नाय कर दे ,बहना मेरी माफ़ कर देय .
बहुत बढ़िया वीरेन्द्र भाई जी आपका विश्लेषण स्वीकार्य है हार्दिक आभार
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