सो रही है दुनिया सारी
तुम हर पल क्यूँ सजग रहे
कौन व्यथा है दबी हिय में
किस अगन में संत्रस्त रहे |
घूर रहे क्यूँ रक्तिम चक्षु
कुपित अधर क्यूँ फड़क रहे
दावानल से केश खुले क्यूँ
तन से शोले भड़क रहे |
प्रदूषण ने ध्वस्त किये
जो, बहु तेरे संबल रहे
कतरा -कतरा टूट-टूट कर
चुपके -चुपके पिघल रहे |
हे हिमगिरी,हे हिमनद
पिघलते रहे जो
यूँ ही अप्रतिहत
प्रलय भयावही आएगी
जगत जननी, पावन धरिणी
सब जल थल हो जायेगी |
कष्ट निवारक ,विपदा हारक
हे जगदीश ,हे त्रिपुरारी
उसे जगा दो अपने बल से
सो रही जो दुनिया सारी|
*****
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काश की जाग जाये हम..............
जवाब देंहटाएंऔर बचा लें इस धरा को........
सुंदर अभिव्यक्ति.
हिम व्यथित है, नित बहाता अश्रु रह रह।
जवाब देंहटाएंकष्ट निवारक ,विपदा हारक
जवाब देंहटाएंहे जगदीश ,हे त्रिपुरारी
उसे जगा दो अपने बल से
सो रही जो दुनिया सारी|
isi prarthana me shamil ho gaye ham ...bhi ....!!
bahut sunder rachna ...!!
चिंता व्यक्त करती खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंकष्ट निवारक ,विपदा हारक
जवाब देंहटाएंहे जगदीश ,हे त्रिपुरारी
उसे जगा दो अपने बल से
सो रही जो दुनिया सारी|
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बहुत सुन्दर भावप्रणव रचना!
वक्त रहते जाग गए तभी हम बचेंगे...
जवाब देंहटाएंसार्थक सन्देश देती रचना .
जवाब देंहटाएंचिंतनीय विषय .
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता
जवाब देंहटाएंकलमदान
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन सार्थक सन्देश देती रचना,...
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
कतरा -कतरा टूट-टूट कर
जवाब देंहटाएंचुपके -चुपके पिघल रहे |...............waah bahut sunder abhivyakti .shabdo ko sunder himnad . bahut khoobsurat laga . jindagi ke tar se juda hua prakrurti ka bhi sunder shabdik srajan . hardik badhai aapko
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 19 -04-2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....ये पगडंडियों का ज़माना है .
उम्दा !!
जवाब देंहटाएंआपकी चिंता जायज है।
जवाब देंहटाएंसादर
ये जीवन दायिनी सरितायें ,हिम-नदों की ही ऋणी हैं पर मानव की अति,भविष्य का विचार किये बिना सबको त्रस्त कर रही है1 .
जवाब देंहटाएंये दुनिया सच में सो रही है ... जब महाप्रलय आएगी तब कुछ भी शेष नहीं रहेगा ... जागरूक करती है आपकी पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंBahut sundar prastuti......
जवाब देंहटाएंhamko jagna hi hoga ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति.अच्छा लगा पढ़ना.
जवाब देंहटाएंsartahk prerak sandesh prsar karti post hae bdhai
जवाब देंहटाएंaapki chinta vajib hai....
जवाब देंहटाएंjaagrukta bhari prastuti ke liye dhanyavad!
पिघलते रहे जो
जवाब देंहटाएंयूँ ही अप्रतिहत
प्रलय भयावही आएगी बहुत बढिया
सच में हम पर्यावरण को नष्ट-भ्रष्ट करके सो ही रहे हैं।
जवाब देंहटाएंकष्ट निवारक ,विपदा हारक
जवाब देंहटाएंहे जगदीश ,हे त्रिपुरारी
उसे जगा दो अपने बल से
सो रही जो दुनिया सारी|
भावों का अनूठा संगम ...बहुत बढि़या।
माफ़ी चाहूंगी आप के ब्लॉग मे आप की रचनाओ के लिए नहीं अपने लिए सहयोग के लिए आई हूँ | मैं जागरण जगंशन मे लिखती हूँ | वहाँ से किसी ने मेरी रचना चुरा के अपने ब्लॉग मे पोस्ट किया है और वहाँ आप का कमेन्ट भी पढ़ा |मैंने उन महाशय के ब्लॉग मे कमेन्ट तो किया है मगर वो जब चोरी कर सकते है तो कमेन्ट को भी डिलीट कर सकते है |मेरा मकसद सिर्फ उस चोर के चेहरे से नकाब उठाने का है | आप से सहयोग की उम्मीद है | लिंक दे रही हूँ अपना भी और उन चोर महाशय का भी, इन्होने एक नहीं मेरी चार रचनाओ को अपने नाम से अपने ब्लॉग मे पोस्ट किया है
जवाब देंहटाएंhttp://div81.jagranjunction.com/author/div81/page/4/
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.in/2011/03/blog-post_557.html
अफसोस,कि भावी पीढ़ियों को हमारे कारण वह सब भुगतना होगा जिसके लिए ज़िम्मेदार हम हैं,वे नहीं।
जवाब देंहटाएंपर्यावरणीय जागरूकता जगाती सुंदर पोस्ट । चेतना जरूरी है ।
जवाब देंहटाएंप्रदूषण ने ध्वस्त किये
जवाब देंहटाएंजो, बहु तेरे संबल रहे
कतरा -कतरा टूट-टूट कर
चुपके -चुपके पिघल रहे |
पिघलते रहे जो
यूँ ही अप्रतिहत
प्रलय भयावही आएगी
जगत जननी, पावन धरिणी
सब जल थल हो जायेगी |
फिर कोई मनु दोहराएगा -हिमगिरी के उत्तुंग शिखर पर ,बैठ शिला की शीतल छाँव
एक पुरुष भीगे नयनों से देख रहा था ,प्रलय प्रवाह .
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आपकी द्रुत टिपण्णी हमारी धरोहर बनके आती है .इस पोस्ट के लिए आपकी सटीक टिप्पणियों के लिए आभार .
जवाब देंहटाएंपर्यावरण के प्रति जागरुक करती उत्तम रचना.
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