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शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

हास्य कविता जय हनुमंत अमंगलहारी




  
जय हनुमंत अमंगलहारी
प्रभु तेरी सेना बड़ी दुखकारीI
नित मेरी बगिया में उत्पात मचावें
फिर मुझको ही अंगूठा दिखावें I
गाजर ,मूली ,भिन्डी सब खाई
खीरे और कद्दू कि तो कर दी सफाई I
नहीं खाते यह सोच अदरख भी लगाईं
इन मुओं ने कहावत भी झुठलाई I
ना मैं सिया ना ये सोने कि लंका
फिर क्यूँ निशदिन बजावें डंकाI
,फल भी आधे फेंके आधे खाए
ये भिलनी के कपूत कहाँ से आयेI
कष्ट निवारण हेतु पटाखे भी छुडाये
किन्तु अगले ही दिन ये फिर लौट आयेI
क्या करूँ प्रभु ,ये तो बहुत ही छिछोरे
दिखाऊं गुलेल तो खीसें निपौरेI
हे प्रभु अगर इस कष्ट से मुक्ति पाऊं
हर मंगलवार तुझपे प्रसाद चढाऊं I
*****











22 टिप्‍पणियां:

  1. kya karun bandaron se dukhi hokar yeh sab likha hai.koi hai jo meri samsya ka nivaran kare.

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  2. bahut khoob ,............ anand se bhar gaya man , sunkar itna sunder varnan. .... kabhi nahi socha tha aise bhi likh sakte hai ......badhai .


    http/sapne-shashi.blogspot.com
    nayi post par apka swagat hai

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  3. बहुत अच्छी लगी आपकी यह प्रस्तुति.
    अब आप प्रसाद चढा ही दीजिये.
    हो सकता है असर हो जाये.
    बजरंगबली की जय हो.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
    ''नाम जप' सब उत्पातों को शांत कर देता है .

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  4. अच्छी हास्य कविता लिखी है आपने। पूरा दृश्य सजीव हो गया।

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  5. हम समस्या के विकराल होने का इंतज़ार कर रहे हैं...ये हर शहर की समस्या बनती जा रही है...और इस ओर सब आँखें मूंदे बैठे हैं...

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  6. बहुत मजेदार हास्य सच्चाई से भरी रचना गाँवो में ये समस्या है जिसका कोई निराकरण नहीं,...सुंदर पोस्ट ....

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  7. करुण रस, भक्ति रस और हास्य रस की त्रिवेणी.वीर रस भी मिल जाये तो मनोवांछित फल की प्राप्ति हो सकती है.दीप-पर्व की शुभकामनायें.

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  8. बहुत बढ़िया .. :):) आप किचेन गार्डन की शौक़ीन हैं यह पता चला ..

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  9. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    सूचनार्थ!

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  10. बहुत रोचक है आपकी यह प्रस्तुति :)

    प्रसाद चढ़ाने के बाद बांटना भी है …

    :) पहुंच रहे हैं प्रसाद लेने …:))

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