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सोमवार, 17 अक्टूबर 2011

नहीं चाहिए ये घर तेरा


नहीं चाहिए ये घर तेरा
ना पंखों का सम्मान किया
ना प्रभु के सर्जन का मान किया
एक तुच्छ पिंजर में डाल दिया
घर की खूँटी पर टांग दिया I
तुम निगल गए मेरा आकाश,
छीन लिया मेरा प्रकाश I
कहाँ गई सब तेरी निष्ठा,
क्या बढ़ गई तेरी प्रतिष्ठा ?
व्यर्थ उन्होंने शीश कटाए
तुम आजादी समझ ना पाएI
जब मैं देखूं गगन की ओर
अपने सहचरों की ओर
दिल खून के घूँट है पीता
मेरी पाँखों में दर्द भी होता I
तू जब घर से बाहर जाता है
मेरे मन में ये आता है
अगर मिले ये जनम दुबारा
इसी पिंजरे में  घर हो तुम्हाराI
नहीं चाहिए ये घर तेरा
देदे मुझको जीवन मेरा
देदे मुझको जीवन मेरा I
*****


20 टिप्‍पणियां:

  1. अगर मिले ये जनम दुबारा
    इसी पिंजरे में घर हो तुम्हाराI
    नहीं चाहिए ये घर तेरा
    देदे मुझको जीवन मेरा
    देदे मुझको जीवन मेरा I

    बेहतरीन!

    सादर

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  2. बहुत गहन विचारों की अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है आपने!

    जवाब देंहटाएं
  3. तुम निगल गए मेरा आकाश,
    छीन लिया मेरा प्रकाश I

    गहरी संवेदना ! सुंदर रचना ....

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  4. ना पंखों का सम्मान किया
    ना प्रभु के सर्जन का मान किया
    एक तुच्छ पिंजर में डाल दिया
    घर की खूँटी पर टांग दिया I waah kittu , tumne apni vyatha kitne spasht shabdon kee hai ..........
    bahut hi gahree baat hai

    जवाब देंहटाएं
  5. तुम निगल गए मेरा आकाश,
    छीन लिया मेरा प्रकाश I...गहन अनुभूति लिए सुन्दर अभिव्यक्ति..

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  6. पिंजरे में बंद पंछी की मार्मिक व्यथा ।
    इन्सान थोडा दुष्ट तो होता है ।

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  7. तू जब घर से बाहर जाता है
    मेरे मन में ये आता है
    अगर मिले ये जनम दुबारा
    इसी पिंजरे में घर हो तुम्हाराI
    बहुत बढिया।

    जवाब देंहटाएं
  8. Very touching creation Rajesh ji . Nothing could be more important than freedom !

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  9. bahut hi khubsurat likha hai aapne. pinjre jaise ghar mein koan rahna chahega .

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  10. पिंजरे के पंछी रे तेरा दर्द ना जाने कोई....बेहतरीन भाव पूर्ण मार्मिक प्रस्तुति.....

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  11. गहन विचारों की अभिव्यक्ति *सादर आभार....

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  12. तुम निगल गए मेरा आकाश--- क्या बात है...अति भाव पूर्ण .

    --- तो वे कहते ..' ले मनुष्य ( के बच्चे ) मिर्च खाले ..

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  13. कोई नहीं सोंचता इनके कष्ट के बारे में ... !
    शुभकामनायें आपको !

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