मुद्दते दीदार हो तुम इतना सितम ढाया ना करो
मैं खुद भी सितमगर बन बैठू तुम इतने करीब आया ना करो !
मैं खुद भी सितमगर बन बैठू तुम इतने करीब आया ना करो !
ये इश्क का दरिया गहरा है तुम डूब के इसमें जाया ना करो
मैं खुद को डुबो बैठूं ना कंही तुम इतने करीब आया ना करो !
मैं खुद को डुबो बैठूं ना कंही तुम इतने करीब आया ना करो !
यूँ प्यार में मिटने मरने को मेरी महफ़िल में आया ना करो
मैं खुद को मिटा डालूं ना कंही तुम इतने करीब आया ना करो !
मैं खुद को मिटा डालूं ना कंही तुम इतने करीब आया ना करो !
ना पंख जला कर राख बनो ना मुझको यूँ रुसवा ही करो
मैं खुद को जला बैठूं ना कंही तुम इतने करीब आया ना करो !
मैं खुद को जला बैठूं ना कंही तुम इतने करीब आया ना करो !
मदहोश निगाहों से कह दो दिल को तुम धड्काया न करो
मैं होश गँवा बैठूं ना कंही तुम इतने करीब आया ना करो !!
तू इतने करीब आया मेरे ये मेरी वफ़ा थी
मेरे पहलू में तेरा दम निकला ये तेरी खता थी !
मैं होश गँवा बैठूं ना कंही तुम इतने करीब आया ना करो !!
तू इतने करीब आया मेरे ये मेरी वफ़ा थी
मेरे पहलू में तेरा दम निकला ये तेरी खता थी !
या रब ऐसी सुलगती हुई कोई शाम ना दे
मेरी वफाओं को ऐसा कोई अंजाम ना दे
खुद को जलाकर रोशन करती हूँ महफिलों को
मेरे चाहने वालों के कत्ल का इल्जाम ना दे !!!
मेरी वफाओं को ऐसा कोई अंजाम ना दे
खुद को जलाकर रोशन करती हूँ महफिलों को
मेरे चाहने वालों के कत्ल का इल्जाम ना दे !!!
या रब ऐसी सुलगती हुई कोई शाम ना दे
जवाब देंहटाएंमेरी वफाओं को ऐसा कोई अंजाम ना दे
खुद को जलाकर रोशन करती हूँ महफिलों को
मेरे चाहने वालों के कत्ल का इल्जाम ना दे...
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वाह!
पढ़कर आनन्द आ गया!
बहुत सुन्दर ग़ज़ल पेश की है आपने!
अगर यह आपके कॉलेज टाइम की लिखी हुई है तो इसकी अहमियत और भी ज्यादा है!
ji yeh maine college time me ek function ke doran hi likhi thi 1975 me likhi thi.
जवाब देंहटाएंआपकी ये कविता पसंद आयी धन्यवाद......!
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंआपकी कविता कहीं गहरे सोच के लिए प्रेरित करती है!
जवाब देंहटाएंखुद को जलाकर रोशन करती हूँ महफिलों को
मेरे चाहने वालों के कत्ल का इल्जाम ना दे !!!
बहुत ही अच्छी पंक्तियाँ।
तू इतने करीब आया मेरे ये मेरी वफ़ा थी
जवाब देंहटाएंमेरे पहलू में तेरा दम निकला ये तेरी खता थी !
वाह क्या बात कही है ..खूबसूरत गज़ल
बहुत सुन्दर भावो से सजी रचना।
जवाब देंहटाएंकॉलेज के दौरान ही ये लिक्खी जा सकती है...ताज़गी और रवानगी वही है...
जवाब देंहटाएंSunder Panktiyan
जवाब देंहटाएंAapki kavitaao n me mujhe amita preetam ki jhalak najar aa rahi hai
जवाब देंहटाएंsundar kavita ke liye badhai
ना पंख जला कर राख बनो ना मुझको यूँ रुसवा ही करो
जवाब देंहटाएंमैं खुद को जला बैठूं ना कंही तुम इतने करीब आया ना करो !
लाजवाब पंक्तियाँ! बहुत ख़ूबसूरत और शानदार ग़ज़ल लिखा है आपने! अनुपम प्रस्तुती!
या रब ऐसी सुलगती हुई कोई शाम ना दे
जवाब देंहटाएंमेरी वफाओं को ऐसा कोई अंजाम ना दे
खुद को जलाकर रोशन करती हूँ महफिलों को
मेरे चाहने वालों के कत्ल का इल्जाम ना दे..
waah ! kya baat hai ! pyaar isi ko kehte hain !
Awesome !
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"मेरा उनसे एक रिश्ता हो गया" पर आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद,
जवाब देंहटाएंgeminians ऐसे ही होते हैं
जिस चाहो
जवाब देंहटाएंउसे पास बुलाया करो
ऐरों गैरों से दूर रहा करो
करीबी से डरा ना करो
हिम्मत से
काम लिया करो
खुद से
यकीन खोया ना करो
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...बधाई
जवाब देंहटाएंbehatreen lines ! aabhar !
जवाब देंहटाएंया रब ऐसी सुलगती हुई कोई शाम ना दे
जवाब देंहटाएंमेरी वफाओं को ऐसा कोई अंजाम ना दे
खुद को जलाकर रोशन करती हूँ महफिलों को
मेरे चाहने वालों के कत्ल का इल्जाम ना दे !!!
गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ... हार्दिक बधाई.
kya khoob likha hai ...
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