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बुधवार, 20 अप्रैल 2011

नारी एक कठपुतली

  जीवन के रंगमंच पर मैं हुनर दिखाने आई हूँ 
                        जो किरदार दिया प्रभु ने उसे निभाने आई हूँ !
                        कभी बेटी ,कभी भार्या कभी जननी बन इठलाई हूँ 
                        जो किरदार दिया प्रभु ने उसे निभाने आई हूँ !
      कभी करुण कभी रौद्र कभी श्रृंगार रस में नहाई हूँ
      कभी चढ़ती ख़ुशी की धूप कभी सुलगती गम की धूप 
      हर हाल में मुस्काई हूँ !
      जो किरदार दिया प्रभु ने उसे निभाने आई हूँ !  
                         जो मन में है वो कहती हूँ जो दिल में है वो लिखती हूँ 
                         हर्दय के उद्द्गारों पर मेरा न कोई जोर है 
                         मैं तो मात्र कठपुतली हूँ 
                         उसके हाथ में मेरी डोर है !!      

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब ...! शुभकामनायें आपके लिए !

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  2. बेशक नारी को कठपुतली कहा जाता है ..लेकिन वास्तविकता में ऐसा नहीं है .....आपका आभार इस सार्थक रचना के लिए ..!

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