जीवन के रंगमंच पर मैं हुनर दिखाने आई हूँ
जो किरदार दिया प्रभु ने उसे निभाने आई हूँ !
कभी बेटी ,कभी भार्या कभी जननी बन इठलाई हूँ
जो किरदार दिया प्रभु ने उसे निभाने आई हूँ !
कभी करुण कभी रौद्र कभी श्रृंगार रस में नहाई हूँ
कभी चढ़ती ख़ुशी की धूप कभी सुलगती गम की धूप
कभी चढ़ती ख़ुशी की धूप कभी सुलगती गम की धूप
हर हाल में मुस्काई हूँ !
जो किरदार दिया प्रभु ने उसे निभाने आई हूँ !
जो मन में है वो कहती हूँ जो दिल में है वो लिखती हूँ
हर्दय के उद्द्गारों पर मेरा न कोई जोर है
मैं तो मात्र कठपुतली हूँ
उसके हाथ में मेरी डोर है !!
हर नारी की यही कहानी
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...! शुभकामनायें आपके लिए !
जवाब देंहटाएंबेशक नारी को कठपुतली कहा जाता है ..लेकिन वास्तविकता में ऐसा नहीं है .....आपका आभार इस सार्थक रचना के लिए ..!
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