यह ब्लॉग खोजें

रविवार, 10 अगस्त 2014

रक्षाबंधन विशेष (माहिया विधा पर आधारित)

ऋतु बड़ी सुहानी है 
घर आ जा बहना 
राखी बँधवानी है ||
अम्बर पे बदरी है 
भैया आ जाओ 
तरसे मन गगरी है |
बहना अब दूरी है 
कैसे आऊँ मैं 
मेरी मजबूरी है ||
कोई मजबूरी ना
आ न सको भैया 
इतनी भी दूरी ना ||
नखरे थे वो झूठे 
मैं आ जाऊँगा 
बहना तू क्यूँ रूठे |
परदेश बसी बहना 
रक्षा बंधन है 
बस तेरा खुश रहना |
चंदा भी मुस्काया 
राखी बँधवाने 
प्यारा भैया आया ||
पूजा की थाली है 
हल्दी का टीका 
राखी नग वाली है ||
राखी तो बांधेगी 
मुँह करके मीठा 
तू नेग भी मांगेगी ||
आगे कलाई करो 
नेग न मांगू मैं
बस सिर पे हाथ धरो||
---------

6 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ
    रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनायें...

    जवाब देंहटाएं
  2. नेग ना माँगूँ मैं बस सिर पे हाथ धरो।

    सच्चे प्यार की अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं