सर्कस का संसार ,रहे कायम ये जबतक
अद्भुत कारोबार , चक्र सा चलता तबतक
चलते फिरते गाँव ,शहर कस्बों में जाते
विस्मित होते लोग ,नये करतब दिखलाते
जोखिम में हैं जान ,नहीं पर चिंता इनको
कहाँ करें परवाह ,पेट भरना है जिनको
कलाकार करतार ,करे इनकी रखवाली
करती ऊर्जावान ,इन्हें लोगों की ताली
नित्य करें अभ्यास ,सभी मिलजुल कर रहते
हार मिले तो मार ,जानवर भी हैं सहते
चटख रंग परिधान ,पहनते हैं ये सारे
चका चौंध के बीच ,लगें आखों को प्यारे
चलें डोर पर चार,हवा में ये लहराते
हो ना हो विशवास ,बड़े करतब कर जाते
तन मन का अभ्यास, यंत्र वत इन्हें बनाता
राह सभी आसान ,पाठ बस यही सिखाता
गज़ब संतुलन खेल ,रचाता देखो पहिया
रोटी की दरकार, कराती ता ता थैय्या
अपने गम को भूल ,हँसाता खुशियाँ बोकर
सर्कस की है जान ,मस्त रंगीला जोकर
जिन्दा है प्राचीन ,कला जो ये हैरत की
इसमें है आयुष्य ,पुरा संस्कृति भारत की
सर्कस के ये खेल ,हुए अब देखो सीमित
जर्मन औ यूरोप ,इन्हें बस रखते जीवित
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सुन्दर रचना1
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंआपने तो पूरा माहौल ही जीवंत कर दिया ..बहोत खूब ..!!!
जवाब देंहटाएंशब्दों से सुंदर चित्रांकन...
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