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बुधवार, 30 जुलाई 2014

वो पीपल का पेड़ (गीतिका छंद)


वृक्ष पीपल का खड़ा है, आज भी उस गाँव में
बचपना मैंने गुजारा, था उसी की छाँव में  
तीज में झूला झुलाती,गुदगुदाती  मस्तियाँ  
गीत सावन के सुनाती ,सरसराती पत्तियाँ

गुह्य पुष्पक दिव्य अक्षय,प्लक्ष इसके नाम हैं  
मूल में इसके सुशोभित, देवता के  धाम हैं
स्वास्थ वर्धक ,व्याधि रोधक,बूटियों की खान है
पूजते हैं लोग इसको  ,शुद्ध संस्कृति वान है   

गाँव का इतिहास उसकी ,तंत्रिकाओं में रमा  
मूल में उसकी किसानों,का पसीना है जमा  
गाँव की पंचायते ,चौपाल भी जमती वहाँ
गर्मियों की चिलचिलाती धूप भी थमती वहाँ


चेतना  की ग्रंथियों को, आज भी वो  खोलता
झुर्रियों में आज उसका, आत्मदर्पण बोलता
शाख पर जिसके लटकती ,आस्था की हांडियाँ
                   झुरझुरी वो ले रही हैं,देख अब कुल्हाड़ियाँ                                                        

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8 टिप्‍पणियां:

  1. कविता पढ़ते पढ़ते गाँव का पीपल सम्मुख आ गया..अति सुंदर शब्द चित्र...

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  2. उत्कृष्ट
    जिवंत गीतिका छंद है :)

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  3. तीज की शुभकामनाएं...बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. और पढते-पढते---एक पीपल खडा हो गया.

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  6. गाँव का इतिहास उसकी ,तंत्रिकाओं में रमा
    मूल में उसकी किसानों,का पसीना है जमा
    गाँव की पंचायते ,चौपाल भी जमती वहाँ
    गर्मियों की चिलचिलाती धूप भी थमती वहाँ

    पीपल का वृक्ष हमारी विरासत है इसे बचाना हमारा कर्तव्य।

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